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मिगुएल हेरनान्देज़ ने जीवन संगीत के सुरों को संघर्ष की तान पर कस खन्दकों से रची युद्ध और प्रेम की कविता। एक योद्धा-कवि जिसने अपने जैसे अन्य योद्धा कवियों की तरह ही मेहनतकश जनता की लड़ाइयों को मज़बूत बनाने के लिए कविता को अपना हथियार बनाया। स्पेन के गृहयुद्ध के दौरान इस कवि ने रेडियो पर, बैरकों में, सैनिकों के बीच फासिस्टों के ख़िलाफ़ चल रहे संघर्ष में सांस्कृतिक मोर्चे की कमान सँभाली।
<poem>मिगुएल हेरनानदेज़ ने जीवन संगीत के सुरों को संघर्ष की तान पर कस खन्दकों से रची युद्ध और प्रेम की कविता। एक योद्धा-कवि जिसने अपने जैसे अन्य योद्धा कवियों की तरह ही मेहनतकश जनता की लड़ाइयों को मज़बूत बनाने के लिए कविता को अपना हथियार बनाया। स्पेन के गृहयुद्ध के दौरान इस कवि ने रेडियो पर, बैरकों में, सैनिकों के बीच फासिस्टों के ख़िलाफ़ चल रहे संघर्ष में सांस्कृतिक मोर्चे की कमान सँभाली। संघर्ष से सृजित मिगेल एरनानदेस मिगुएल हेरनान्देज़ की कविताएँ मेहनतकश जनता, उसकी ज़िन्दगी, उसकी ख़ुशियाँ, उत्सव, आँसुओं, लड़ाइयों से गहरे जुड़ी थीं और यह जुड़ाव मात्र भावनात्मक ज़मीन पर नहीं था। स्पेन के गृहयुद्ध के दौरान उसकी जीवन-ज्ञान-व्यवस्था का समन्वय सर्वहारा दर्शन और विज्ञान से हुआ। हालाँकि सर्वहारा दर्शन और विज्ञान के सम्पर्क में आने के 6 सालों के अन्दर महज़ 31 साल की उम्र में मिगेल मिगुएल की मौत हो गयीगई, लेकिन इसके बावजूद जन-संघर्षों में प्रत्यक्ष भागीदारी ने उसकी वर्ग चेतना को उन्नत बनाया। ये छः साल मिगेल की ज़िन्दगी और पूरे स्पेन के इतिहास के लिए बेहद उथल-पुथल के दौर थे। 1931 में प्रिमो दे रिवेरा की तानाशाही को समाप्त कर बनी रिपब्लिकन सरकार ने पूरी व्यवस्था में परिवर्तन के लिए कई उग्र सुधार किये किए जिसमें भूमि-सुधार, सेना में परिवर्तन, चर्च और शिक्षा के सम्बन्ध-विच्छेद, श्रम सुधार आदि शामिल थे। इसके अलावा कातालोनिया और बास्क क्षेत्रों को इस सरकार ने कई स्वायत्त अधिकार दिये। दिए। हालाँकि पिछड़ी अर्थव्यवस्था और महामन्दी के प्रभाव में इनमें से कई सुधारों, मुख्यतः श्रम सम्बन्धी सुधारों को पूरी तरह लागू कर पाना सम्भव नहीं हो पा रहा था। इस सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी ज़मींदारियाँ जिसे लातिफुन्दिया कहा जाता था, के अधिग्रहण की शुरुआत की और इन ज़मीनों को ग्रामीण सर्वहारा के बीच इनएलिएनेबल युज़फ्रक्ट (न छीने जा सकने वाले भोगाधिकार) के आधार पर वितरित करने की शुरुआत भी की। लेकिन यह प्रक्रिया भी काफ़ी धीमी थी और इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी भी बढ़ रही थी। शहरी मज़दूरों की वेतन में वृद्धि तो कर दी गयीगई, लेकिन महामन्दी और पूँजीपतियों की वजह से ये सुधार लागू नहीं हो पा रहे थे। अभी यह सरकार स्थायी नहीं हो पायी थी और साथ ही पूरे यूरोप की फासिस्ट ताक़तें इस सरकार को गिराने के लिए स्पेन के फासिस्टों को हर तरह की मदद पहुँचा रही थी। 1933 में रिपब्लिकन सरकार गिरती है और आलेख़ान्द्रो लेरुक्स के नेतृत्व में सेदा (स्पैनिश कॉनफ़िडरेशन ऑफ़ अटॉनमस राइट) की सरकार बनती है जिसमें दक्षिणपन्थी और फासिस्ट ताक़तों की बहुतायत थी। इस सरकार ने अपने एक साल के कार्यकाल में जनान्दोलनों का बर्बर दमन किया और जनता के जनवादी अधिकारों का हनन किया। 1934 में बारसेलोना के औद्योगिक क्षेत्र और अस्तुरियास की खानों में मज़दूरों की बड़ी-बड़ी हड़तालें संगठित हो रही थीं। लेरुक्स की सरकार ने अस्तुरिया के खान मज़दूरों की हड़ताल का बर्बर दमन किया जिसमें 3,000 मज़दूर लड़ते हुए मारे गये और 35,000 को जेलों में क़ैद कर दिया गया। अस्तुरियास खान मज़दूरों के हड़ताल के बर्बर दमन ने मिगेल के संवेदनशील अन्तःकरण को झकझोरकर रख दिया।
अभी यह सरकार स्थाई नहीं हो पाई थी और साथ ही पूरे यूरोप की फासिस्ट ताक़तें इस उथल-पुथल सरकार को गिराने के दौरान मिगेल लिए स्पेन के फासिस्टों को हर तरह की राजधानी मादरिद आता मदद पहुँचा रही थी। 1933 में रिपब्लिकन सरकार गिरती है और यहाँ से इस कवि आलेख़ान्द्रो लेरुक्स के नेतृत्व में सेदा (स्पैनिश कॉनफ़िडरेशन ऑफ़ अटॉनमस राइट) की अभिव्यक्ति पद्धति, सौन्दर्याभिरुचि सरकार बनती है जिसमें दक्षिणपन्थी और वैचारिकी में आमूलचूल परिवर्तन फासिस्ट ताक़तों की शुरुआत होती है। बहुतायत थी। इस परिवर्तन में सबसे बड़ी भूमिका निभायी आस्तुरियास खान मज़दूरों सरकार ने अपने एक साल के कार्यकाल में जनान्दोलनों का बर्बर दमन ने। चिले के कवि पाब्लो नेरुदा किया और स्पेन जनता के कवि विसेन्ते आलेक्सान्द्रे से मुलाक़ात जनवादी अधिकारों का हनन किया। 1934 में बारसेलोना के औद्योगिक क्षेत्र और दोस्ती ने अस्तुरिया अस्तुरियास की घटना के बाद मिगेल के कवि मन खानों में उठ रहे सवालों को समझने में मदद की। परम्परागत शैली में धार्मिक कविताएँ लिखने वाले रामोन सिखे का मिगेल मज़दूरों की कविता शैली पर गहरा प्रभाव था। लेकिन इन दोनों बड़ी-बड़ी हड़तालें संगठित हो रही थीं। लेरुक्स की दोस्ती सरकार ने मिगेल को ‘आवान्त गार्द’ कविता और साथ ही रिपब्लिकन तथा कम्युनिस्ट विचारधारा से परिचय कराया। पाब्लो नेरुदा अस्तुरिया के प्रभाव में मिगेल ने कविता खान मज़दूरों की परम्परागत शैली से अपना सम्बन्ध-विच्छेद किया। ‘पोयेसिया इमपूरा’ (अशुद्ध कविता) को अपनाया। काबायो वेर्दे पारा ला पोएसियाहड़ताल का बर्बर दमन किया जिसमें 3, एक साहित्यिक पत्रिका000 मज़दूर लड़ते हुए मारे गये और 35, 000 को जेलों में पाब्लो नेरुदा पोयेसिया इमपूरा की व्याख्या इस प्रकार करते हैं –क़ैद कर दिया गया। अस्तुरियास खान मज़दूरों के हड़ताल के बर्बर दमन ने मिगेल के संवेदनशील अन्तःकरण को झकझोरकर रख दिया।
“हमें जिस कविता इस उथल-पुथल के दौरान मिगेल स्पेन की तलाश राजधानी मादरिद आता है वह ऐसी हो; तेज़ाब और यहाँ से इस कवि की अभिव्यक्ति पद्धति, सौन्दर्याभिरुचि और वैचारिकी में आमूलचूल परिवर्तन की तरह हाथों शुरुआत होती है। इस परिवर्तन में सबसे बड़ी भूमिका निभाई आस्तुरियास खान मज़दूरों के मेहनत से घिसी हुई कविता; पसीने दमन ने। चिले के कवि पाब्लो नेरुदा और धुएँ स्पेन के कवि विसेन्ते आलेक्सान्द्रे से लथ-पथ; पेशाब मुलाक़ात और लिलि सी महकती; जिस दोस्ती ने अस्तुरिया की घटना के बाद मिगुएल के कवि मन में उठ रहे सवालों को समझने में मदद की। परम्परागत शैली में धार्मिक कविताएँ लिखने वाले रामोन सिखे का मिगुएल की कविता शैली पर छिड़के हैं क़ानूनी गहरा प्रभाव था। लेकिन इन दोनों की दोस्ती ने मिगुएल को ‘आवान गार्द’ कविता और ग़ैरसाथ ही रिपब्लिकन तथा कम्युनिस्ट विचारधारा से परिचय कराया। पाब्लो नेरुदा के प्रभाव में मिगुएल ने कविता की परम्परागत शैली से अपना सम्बन्ध-क़ानूनी व्यवसाय। विच्छेद किया। ‘पोयेसिया इमपूरा’ (अशुद्ध कविता) को अपनाया। काबायो वेर्दे पारा ला पोएसिया, अशुद्ध किसी पोशाक की तरहएक साहित्यिक पत्रिका, किसी शरीर में पाब्लो नेरुदा पोयेसिया इमपूरा की तरह अशुद्ध जिस पर दाग हों कुपोषण के और जिसके अन्दाज़़ हो शर्मिले, जिसमें झुर्रियाँ, विचार, सपने, रतजगा, भविष्यवाणियाँ, प्यार और नफ़रत का इज़हार, जंगली-जानवर, झटके, निर्बन्ध प्रेम-प्रसंग, राजनीतिक विचार, निषेध, संशय, अनुमोदन, कर हो।”व्याख्या इस प्रकार करते हैं –
“हमें जिस कविता की तलाश है वह ऐसी हो; तेज़ाब की तरह हाथों के इस पहलू के साथ परिचय मेहनत से मिगेल ने शब्दों की रूपान्तरकारी शक्ति को जाना और घिसी हुई कविता की सामाजिक ; पसीने और राजनीतिक भूमिका को पहचाना। हालाँकि एरनानदेस की शुरुआती कविताओं में उनकी कलात्मक अभिव्यक्ति का मुख्य विषय प्रकृति, प्रेम धुएँ से लथ-पथ; पेशाब और कामोत्तेजक कैशौर्य रचनाएँ थीं जिनमें परम्परागत शैली के साथ धार्मिक प्रभाव स्पष्ट नज़र आते हैं। एरनानदेस की काव्यात्मक अभिव्यक्तियों में सामाजिक-राजनीतिक प्रतिबद्धता का तत्व बाद की रचनाओं में आता है। गृहयुद्ध के काल में स्पेनी समाज लिलि सी महकती; जिस कठिन पर छिड़के हैं क़ानूनी और वेगवाही दौर से गुज़र रहा था मिगेल उससे अछूता नहीं रहा। इस दौर में उसकी ग़ैर-क़ानूनी व्यवसाय। कविता ने जुझारू और विद्रोही सुर अपनाया। मिगेल , अशुद्ध किसी पोशाक की इस दौर तरह, किसी शरीर की कलात्मक रचनाओं को पढ़कर महसूस होता है कि कवि की आभ्यान्तरीकृत जीवन-दृष्टि मानवतावादी मूल्यों से गहन प्रभावित होने तरह अशुद्ध जिस पर दाग हों कुपोषण के साथ-साथ सर्वहारा सिद्धान्त और दर्शन के भी करीब थी। गृहयुद्ध आरम्भ होने के बाद मिगेल रिपब्लिकनों के प्रति प्रतिबद्ध रहा। सितम्बर 1936 में वह रिपब्लिकन सेना के पाँचवीं रेजिमेण्ट में वालेण्टियर की तरह भर्ती हुआ जिसके अन्दाज़़ हो शर्मीले, जिसमें झुर्रियाँ, विचार, सपने, रतजगा, भविष्यवाणियाँ, प्यार और यह योद्धानफ़रत का इज़हार, जंगली-कवि (पोयताजानवर, झटके, निर्बन्ध प्रेम-सोलदादो) रिपब्लिकन सेना का सांस्कृतिक कामिसार बना। मिगेल के इस दौर के संघर्षपूर्ण जीवन और स्पेन के कठिन दौर को हम उसके कविता संकलनोंप्रसंग, वियेन्तो देल पुयेब्लो (1937) और एल ओम्ब्रे आसेचा में देख सकते हैं।राजनीतिक विचार, निषेध, संशय, अनुमोदन, कर हो।”
मिगेल की उभरती राजनीतिक चेतना की पहली अभिव्यक्ति उसकी कविता ‘सोनरेईदमे” (मेरी तरफ़ मुस्कुराओ) में आती है। के इस पहलू के साथ परिचय से मिगुएल ने शब्दों की रूपान्तरकारी शक्ति को जाना और कविता में मिगेल की सामाजिक और राजनीतिक भूमिका को पहचाना। हालाँकि हेरनान्देज़ की शुरुआती कविताओं में उनकी कलात्मक अभिव्यक्ति का मुख्य विषय प्रकृति, प्रेम और कामोत्तेजक कैशौर्य रचनाएँ थीं जिनमें परम्परागत शैली और के साथ धार्मिक प्रभाव से स्पष्ट विच्छेद और नेरुदा और आलेक्सान्द्रे नज़र आते हैं। मिगुएल हेरनान्देज़ की काव्यात्मक अभिव्यक्तियों में सामाजिक-राजनीतिक प्रतिबद्धता का प्रभाव दिखता तत्व बाद की रचनाओं में आता है। मिगेल गृहयुद्ध के सामने वह दुनिया खुलती हुई नज़र आती है जिसमें कविता तराशे हुए हीरे-जवाहरात काल में स्पेनी समाज जिस कठिन और वेगवाही दौर से जड़े आभूषण गुज़र रहा था मिगुएल उससे अछूता नहीं होती, बल्कि जिसमें रहा। इस दौर में उसकी कविता साँस लेती, धड़कती, लड़ती, जनता ने जुझारू और विद्रोही सुर अपनाया। मिगुएल की इस दौर की कलात्मक रचनाओं को पढ़कर महसूस होता है कि कवि की आभ्यान्तरीकृत जीवन-दृष्टि मानवतावादी मूल्यों से गहन प्रभावित होने के साथ खड़ी होती है। सोनरेईदमे -साथ सर्वहारा सिद्धान्त और दर्शन के भी करीब थी। गृहयुद्ध आरम्भ होने के बाद मिगुएल रिपब्लिकनों के प्रति प्रतिबद्ध रहा। सितम्बर 1936 में मिगेल पूँजी वह रिपब्लिकन सेना के पाँचवीं रेजिमेण्ट में वालेण्टियर की बेरहम मार तरह भर्ती हुआ और घृणित चर्च यह योद्धा-कवि (पोयता-सोलदादो) रिपब्लिकन सेना का सांस्कृतिक कामिसार बना। मिगुएल के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करता है –इस दौर के संघर्षपूर्ण जीवन और स्पेन के कठिन दौर को हम उसके कविता संकलनों, वियेन्तो देल पुयेब्लो (1937) और एल ओम्ब्रे आसेचा में देख सकते हैं।
—मिगुएल की उभरती राजनीतिक चेतना की पहली अभिव्यक्ति उसकी कविता ‘सोनरेईदमे” (मेरी तरफ़ मुस्कुराओ) में आती है। इस कविता में मिगुएल की परम्परागत शैली और धार्मिक प्रभाव से स्पष्ट विच्छेद और नेरुदा और आलेक्सान्द्रे का प्रभाव दिखता है। मिगुएल के सामने वह दुनिया खुलती हुई नज़र आती है जिसमें कविता तराशे हुए हीरे-जवाहरात से जड़े आभूषण नहीं होती, बल्कि जिसमें कविता साँस लेती, धड़कती, लड़ती, जनता के साथ खड़ी होती है। सोनरेईदमे में मिगुएल पूँजी की बेरहम मार और घृणित चर्च के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करता है –
मुस्कुराओ मेरी तरफ़, कि मैं जा रहा हूँ<br>वहाँ, जहाँ हमेशा से हो तुम सब,<br>जो धान की बालियों और पुलियों से ढँक देते हो हम पर थूकने वालों के मुँह,<br>जो मेरे साथ खेतों, मचानों, लुहारखाने, भट्ठी में<br>दिन-ब-दिन नोंच फेंकते हो पसीने के मुकुट।<br>मैं अपने-आपको मुक्त करता हूँ मन्दिरों से:<br>मुस्कुराओ मेरी तरफ़<br>
वहाँमिगुएल जब स्पेन के उग्र परिवर्तनों और जनता के संघर्षों से जुड़ रहा था तब उसके संवेदनशील अन्तर्जीवन ने इन परिवर्तनों को भावनात्मक ज़मीन पर महसूस किया और तदनुसार उसे सम्पादित-संशोधित, जहाँ हमेशा पुनर्गठित कर अपनी कलात्मक अभिव्यक्तियों में प्रस्तुत किया। लेकिन इन परिवर्तनों से हो तुम सबप्रत्यक्ष जुड़ाव और जनता के संघर्षों में सक्रिय भूमिका ने मिगेल को भावनात्मक ज़मीन से आगे चीज़़ों की सैद्धान्तिक समझदारी की ओर अग्रसर किया। उसने भावना और सिद्धान्त के जैविक मिश्रण को अभ्यान्तरीकृत किया। लेखक के अन्तर्जीवन – संवेदनशील अन्तर्जीवन के संशोधन-परिष्करण का कार्य इतना सरल नहीं होता। लेकिन मेहनतकश जनता से सच्चा जुड़ाव और उनके संघर्षों में प्रत्यक्ष भागीदारी इस प्रक्रिया को तीव्र कर देती है। एक सच्चा संवेदनशील कवि अपनी जनता,उसके विद्रोहों और संघर्षों से अलग-थलग कला का सृजन नहीं कर सकता।
जो धान मिगुएल के संवेदनात्मक-अनुभवात्मक जीवन-ज्ञान- व्यवस्था के साथ सिद्धान्त का समन्वय उसकी कविता आन्दालूसेस दे ख़येन में स्पष्ट दिखती है। इस कविता में वह उग्र मानवतावादी भावनात्मक उद्गार की बालियों सीमाओं को भेदता हुआ उत्पादन तथा उत्पादन सम्बन्धों में जनता की भूमिका तक पहुँचता है। इस कविता में ख़येन के आन्दालूसी उस मेहनतकश मज़दूर आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपनी मेहनत से पूरी दुनिया को काया और पुलियों सुन्दरता देती है। इतना ही नहीं अपने ही उत्पादन से ढँक देते हो हम पर थूकने वालों के मुँह,अलगाव में जी रही इस सर्जक आबादी को मिगुएल उसकी शक्ति का एहसास दिलाता है।
जो मेरे साथ खेतोंजैतून चुनने वाले<br>ख़येन के आन्दालूसियो, मचानों, लुहारखाने, भट्ठी में<br>अभिमानी जैतून चुनने वालो<br>आत्मा की गहराई से मुझे बताओ<br>किसने बड़ा किया इन जैतून के पेड़ों को<br>ख़येन के आन्दालूसियो<br><br>
दिन-ब-दिन नोंच फेंकते हो न पैसे ने, न मालिक ने और<br>न ही निरे शून्य ने<br>बल्कि मौन मिट्टी,<br>मेहनत और पसीने ने<br>शुद्ध पानी और ग्रहों<br>के मुकुट।साथ मिलकर<br>तुम तीनों ने दी है ख़ूबसूरती<br>इसके घुमावदार तनों को<br>ख़येन के आन्दालूसियो,<br><br>
मैं अपने-आपको मुक्त करता हूँ मन्दिरों अभिमानी जैतून चुनने वालो<br>आत्मा की गहराई से:मुझे बताओे<br>किसने दूध पिलाया जैतून के पेड़ों को।<br>न जाने जैतून की कितनी सदियाँ,<br>बँधे हुए हाथ-पाँव<br>दिन-ब-दिन, रात-दर-रात<br>अपने बोझ तले दबाती हैं तुम्हारी हड्डियों को!<br>ख़येन के आन्दालूसियो,<br><br>
मुस्कुराओ मेरी तरफ़ — मिगेल जब स्पेन के उग्र परिवर्तनों और जनता के संघर्षों से जुड़ रहा था तब उसके संवेदनशील अन्तर्जीवन ने इन परिवर्तनों को भावनात्मक ज़मीन पर महसूस किया और तदनुसार उसे सम्पादित-संशोधित, पुनर्गठित कर अपनी कलात्मक अभिव्यक्तियों में प्रस्तुत किया। लेकिन इन परिवर्तनों से प्रत्यक्ष जुड़ाव और जनता के संघर्षों में सक्रिय भूमिका ने मिगेल को भावनात्मक ज़मीन से आगे चीज़़ों की सैद्धान्तिक समझदारी की ओर अग्रसर किया। उसने भावना और सिद्धान्त के जैविक मिश्रण को अभ्यान्तरीकृत किया। लेखक के अन्तर्जीवन – संवेदनशील अन्तर्जीवन के संशोधन-परिष्करण का कार्य इतना सरल नहीं होता। लेकिन मेहनतकश जनता से सच्चा जुड़ाव और उनके संघर्षों में प्रत्यक्ष भागीदारी इस प्रक्रिया को तीव्र कर देती है। एक सच्चा संवेदनशील कवि अपनी जनता, उसके विद्रोहों और संघर्षों से अलग-थलग कला का सृजन नहीं कर सकता। मिगेल के संवेदनात्मक-अनुभवात्मक जीवन-ज्ञान- व्यवस्था के साथ सिद्धान्त का समन्वय उसकी कविता आन्दालूसेस दे ख़येन में स्पष्ट दिखती है। इस कविता में वह उग्र मानवतावादी भावनात्मक उद्गार की सीमाओं को भेदता हुआ उत्पादन तथा उत्पादन सम्बन्धों में जनता की भूमिका तक पहुँचता है। इस कविता में ख़येन के आन्दालूसी उस मेहनतकश मज़दूर आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपनी मेहनत से पूरी दुनिया को काया और सुन्दरता देती है। इतना ही नहीं अपने ही उत्पादन से अलगाव में जी रही इस सर्जक आबादी को मिगेल उसकी शक्ति का एहसास दिलाता है। जैतून चुनने वाले ख़येन के आन्दालूसियो, अभिमानी जैतून चुनने वालो आत्मा की गहराई से मुझे बताओ किसने बड़ा किया इन जैतून के पेड़ों को ख़येन के आन्दालूसियो न पैसे ने, न मालिक ने और न ही निरा शून्य ने बल्कि मौन मिट्टी, मेहनत और पसीने ने शुद्ध पानी और ग्रहों के साथ मिलकर तुम तीनों ने दी है ख़ूबसूरती इसके घुमावदार तनों को ख़येन के आन्दालूसियो, अभिमानी जैतून चुनने वालो आत्मा की गहराई से मुझे बताओे किसने दूध पिलाया जैतून के पेड़ों को। न जाने जैतून की कितनी सदियाँ, बँधे हुए हाथ-पाँव दिन-ब-दिन, रात-दर-रात अपने बोझ तले दबाती हैं तुम्हारी हड्डियों को! ख़येन के आन्दालूसियो, अभिमानी जैतून चुनने वालो,<br>मेरी आत्मा पूछती है: किसके, किसके हैं<br>ये जैतून के पेड़?<br>ख़येन, अपने चन्द्रिका पत्थरों से<br>पूरे आक्रोश में उठो<br>कि कोई भी गुलाम नहीं रहेगा<br>न तुम न तुम्हारे जैतून के बागीचे<br>तेल की पारदर्शिता और<br>उसकी महक के बीच तुम्हारी मुक्ति<br>है पर्वतों की मुक्ति में<br>
(ख़येन स्पेन के आन्दालूसिया क्षेत्र का एक शहर है जिसे जैतून के तेल का वैश्विक केन्द्र माना जाता है।)
मिगेल मिगुएल हेरनान्देज़, जिसकी कविता को पढ़कर कभी पाब्लो नेरुदा ने कहा था कि इनसे चर्च की बू आती है, वही कवि स्पेनी गृहयुद्ध के समय ‘क्रान्ति का कवि’ कहा जाने लगा। मिगेल मिगुएल रेडियो पर मेहनतकश जनता के जीवन, संघर्ष, एकता, प्यार, सपने, मुक्ति और नये नए जीवन की कविताओं को पढ़कर सुनाता था। युद्ध के दौरान खन्दकों में, मोर्चों पर सैनिकों के साथ क़दम से क़दम मिलाता हुआ यह योद्धा-कवि कविता का सृजन करता और जनता के गीत गाता।
1939 में रिपब्लिकन सेना की हार के साथ स्पेन में गृहयुद्ध की समाप्ति होती है, फासीवादी फ़्रांसिस्को फ़्रांको की तानाशाही स्थापित होती है और इस तानाशाही के साथ आतंक, दमन, उत्पीड़न के काले दौर का आरम्भ होता है। सत्ता में आने से पहले और सत्ता में स्थापित होने के बाद फासीवादियों का सर्वाधिक सशक्त प्रतिरोध कम्युनिस्टों ने किया था। फासीवादियों को भी पता है कि उनके सबसे शक्तिशाली प्रतिरोधी कम्युनिस्ट ही हैं, इसलिए जहाँ कहीं भी ये सत्ता में आये आए चाहे इटली हो, जर्मनी हो या स्पेन, सभी जगह इन्होंने व्यापक स्तर पर कम्युनिस्टों की हत्या की, उन्हें कारावास में डाला है और यन्त्रणा शिविरों में प्रताड़ित किया है। गृहयुद्ध की समाप्ति पर मिगेल मिगुएल को पुर्तगाल से गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ समय के लिए उसे जेल से छोड़ दिया गया और फिर दुबारा गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में ही उसे तपेदिक हो गया गई और फिर उसकी मौत हो गयी। गई। स्पेन के गृहयुद्ध में मिगेलमिगुएल, लोर्का, क्रिस्टोफर कॉडवेल जैसे जनपक्षधर कवियों और बुद्धिजीवियों ने अन्त तक जनता का साथ नहीं छोड़ा और उसके संघर्ष में वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गये। कॉडवेल इण्टरनेशनल ब्रिगेड के सदस्य थे और ऐसे बुद्धिजीवी थे जिन्होंने सिद्धान्त और व्यवहार के द्वन्द्वात्मक सम्बन्ध को पुनःस्थापित किया था।
मिगेल मिगुएल के जीवन के अन्तिम दिन ज़्यादातर जेल की सलाखों के पीछे बीते। लेकिन सलाखों के बाहर भी ज़िन्दगी क़ैद थी। इन अँधेरे दिनों के गीत मिगेल मिगुएल ने अपनी कविताओं में गाए हैं। ये कविताएँ उन अँधेरे, निराशा, हताशा, विशाद और मायूसी भरे दिनों की कविताएँ हैं जो अँधेरे समय का गीत गाती हैं। ऐसी ही एक कविता है नाना दे सेबोया (प्याज़ की लोरी)। मिगेल मिगुएल की पत्नी ने उसे जेल में चिट्ठी भेजी और उसे बताया कि घर में खाने को कुछ भी नहीं है सिवाय प्याज़ और ब्रेड के। मिगेल मिगुएल का एक छोटा बेटा था, मिगेल मिगुएल ने जेल से अपने बेटे के लिए यह लोरी लिखी थी –
प्याज़ की लोरी<br>प्याज पाला है<br>बेचारा और क़ैद:<br>तुम्हारे दिन और<br>मेरी रातों का पाला<br>भूख और प्याज:<br>काली बर्फ़ और<br>बड़ा सा गोल पाला।<br>भूख के झूले में<br>है मेरा लाल<br>जो पल रहा था<br>प्याज के ख़ून पर<br>लेकिन तुम्हारा ख़ून<br>चीनी, प्याज़ और<br>भूख का पाला<br>चाँदनी में ढली<br>साँवली औरत<br>बहती है झूले पर<br>रेशा-रेशा<br>हँसो, मेरे लाल<br>कि ज़रूरत होने पर<br>तुम चाँद को भी<br>निगल जाओगे।<br>
—
तुम्हारी हँसी मुझे आज़ाद करती है,<br>मुझे पंख देती है<br>मुझसे मेरा अकेलापन छीन लेती है<br>नोच देती है मेरी सलाखों को।<br>मुँह जो उड़े, दिल<br>जो तुम्हारे होंठों पर बिजली की तरह कौंध जाये।जाए।</poembr>