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+ | इन बेकार की बातों से भी घबरा जाता हूं मैं | ||
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18:54, 13 जून 2018 के समय का अवतरण
कभी कहीं , कभी कहीं
यूं फिरे ,जैसे ये भी याद नहीं
कि कौन सी चीज गुम गई है ?
यादें ...
जो हर वक्त घुमाती रहती थी मन को
खो सी गई है
पता ही नहीं चलता
मीठे पानी की धारा
क्यों पतली हो चली है ?
आजकल हल्की पर गई हैं
मेरी नजरों में आप
कहीं ऐसा तो नहीं सोचने लगी हैं
यह भी एक वजह हो सकती है शायद
या कि मैं ही खण्डित हो गया हूं
सरकार की नजरों से
इन बेकार की बातों से भी घबरा जाता हूं मैं
.......आज कल