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"तान्या / मोईन बेस्सिसो / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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'''द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब नाज़ियों ने सोवियत संघ पर हमला किया, तो एक लम्बे समय तक लेनिनग्राद (साँक्त पितेरबुर्ग) नगर को चारों तरफ़ से घेरे रखा था। तान्या का परिवार भी नाज़ियों से घिर गया था। लेनिनग्राद की मुक्ति के बाद एक मकान से तान्या की डायरी के पन्ने मिले थे, जिनमें इस बच्ची ने अपनी मृत्यु से पहले अपने परिवार पर पड़ी आपदाओं का वर्णन किया है।'''
 
'''द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब नाज़ियों ने सोवियत संघ पर हमला किया, तो एक लम्बे समय तक लेनिनग्राद (साँक्त पितेरबुर्ग) नगर को चारों तरफ़ से घेरे रखा था। तान्या का परिवार भी नाज़ियों से घिर गया था। लेनिनग्राद की मुक्ति के बाद एक मकान से तान्या की डायरी के पन्ने मिले थे, जिनमें इस बच्ची ने अपनी मृत्यु से पहले अपने परिवार पर पड़ी आपदाओं का वर्णन किया है।'''
  
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मैं जानता हूँ तान्या
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पहले की तरह बहती रहेगी निवा नदी
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पहले की तरह घूमती रहेगी धरती
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जनरलों को मिलता रहेगा सम्मान
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और बेरूत के होटलों में बैरे
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धोते रहेंगे, चम्मच और प्लेटें
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इस्तम्बूल के हमामघरों में
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हमेशा की तरह दिए जाते रहेंगे तौलिए
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साबुन के गले हुए टुकड़े
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बदले जाते रहेंगे नए साबुनों से
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और दमिश्क में कहीं
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खिड़कियों के शीशों पर
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लिखी जाती रहेंगी कविताएँ
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चिड़ियाघर के पिंजरे में बन्द बन्दरिया
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बदल लेगी अपना प्रेमी
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येरूशलम की दीवार पर फूट-फूट कर रोएगी कबूतरी
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और सदा की तरह ही
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आकाश पर काले बादल छा जाएँगे
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लेकिन अभी तक
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जो भी मैंने तुम्हारे बारे में सुना
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और पढ़े तुम्हारी डायरी के नौ पन्ने
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चटके हुए शीशे की तरह
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कोई गीत भी काटता है मेरी गर्दन
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धरती के चेहरे पर दौड़ता है तुम्हारा ख़ून
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कैसे देख सकता हूँ मैं
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इस चेहरे की तरफ़
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संसार भर की औरतों
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किसके उर्वर गर्भाशय से पैदा
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पापी बच्चे
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होते हैं संसार के सबसे पवित्र बच्चे !
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पर सुनिए
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माँ नहीं बनेगी तान्या !
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"पहले दिन : मरे थे पिता ..."
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"दूसरे दिन : मर गया भाई ..."
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"तीसरे दिन : मर गई माँ ..."
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मर गई खिड़की
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आईना
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दरवाज़ा
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बच्चे की तरह मर गया घर गली के हाथों में
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और
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"मैं अकेली रह गई..."
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लाखों घोड़ों ने
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ट्राय के किले के
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दरवाज़े खटखटाए
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तुम्हारी कुरूप गुड़िया के चुम्बन से
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मृत शहर पुनर्जीवित हुआ
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पर नहीं बन पाया नया ट्राय
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तान्या
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नहीं बन पाया हमारा विश्व
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गुलाब का एक बगीचा
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फूलों का बग़ीचा नहीं बन पाया
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बन गया सैनिक क़त्लगाह
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फ़िलहाल शान्त हैं हत्यारे
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छिपा रहे हैं फ़्रिजों में
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सीलबन्द टीन के डिब्बे
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आभासहीन ख़ामोशी से
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धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं
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एक ख़ास वक़्त के इन्तज़ार में
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मैं कैसे जीऊँ और लिखूँ
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जब सेब नहीं
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आकाश से गिरते हों बम
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और शहर हो वैसा का वैसा
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किसका रक़्त है —  जल्लाद के गालों पर
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मैं कैसे जीऊँ
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जब कोई नई तान्या
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विश्व के किसी भी शहर में
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हत्यारों के आगमन की प्रतीक्षा में हो
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कैसे लिखूँ, क्या लिखूँ मैं
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जब कोई नई तान्या
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अपनी डायरी में लिख रही हो —
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’पहला दिन ...’
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’दूसरा दिन ...’
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और होगा क्या तीसरा भी ?
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कौन जानता है
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क्या होगा तीसरे दिन ?
  
 
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
 
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
 
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02:16, 15 जून 2018 का अवतरण

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब नाज़ियों ने सोवियत संघ पर हमला किया, तो एक लम्बे समय तक लेनिनग्राद (साँक्त पितेरबुर्ग) नगर को चारों तरफ़ से घेरे रखा था। तान्या का परिवार भी नाज़ियों से घिर गया था। लेनिनग्राद की मुक्ति के बाद एक मकान से तान्या की डायरी के पन्ने मिले थे, जिनमें इस बच्ची ने अपनी मृत्यु से पहले अपने परिवार पर पड़ी आपदाओं का वर्णन किया है।

मैं जानता हूँ तान्या
पहले की तरह बहती रहेगी निवा नदी
पहले की तरह घूमती रहेगी धरती
जनरलों को मिलता रहेगा सम्मान
और बेरूत के होटलों में बैरे
धोते रहेंगे, चम्मच और प्लेटें

इस्तम्बूल के हमामघरों में
हमेशा की तरह दिए जाते रहेंगे तौलिए
साबुन के गले हुए टुकड़े
बदले जाते रहेंगे नए साबुनों से
और दमिश्क में कहीं
खिड़कियों के शीशों पर
लिखी जाती रहेंगी कविताएँ

चिड़ियाघर के पिंजरे में बन्द बन्दरिया
बदल लेगी अपना प्रेमी
येरूशलम की दीवार पर फूट-फूट कर रोएगी कबूतरी
और सदा की तरह ही
आकाश पर काले बादल छा जाएँगे

लेकिन अभी तक
जो भी मैंने तुम्हारे बारे में सुना
और पढ़े तुम्हारी डायरी के नौ पन्ने
चटके हुए शीशे की तरह
कोई गीत भी काटता है मेरी गर्दन

धरती के चेहरे पर दौड़ता है तुम्हारा ख़ून
कैसे देख सकता हूँ मैं
इस चेहरे की तरफ़

संसार भर की औरतों
किसके उर्वर गर्भाशय से पैदा
पापी बच्चे
होते हैं संसार के सबसे पवित्र बच्चे !
पर सुनिए
माँ नहीं बनेगी तान्या !

"पहले दिन : मरे थे पिता ..."
"दूसरे दिन : मर गया भाई ..."
"तीसरे दिन : मर गई माँ ..."
मर गई खिड़की
आईना
दरवाज़ा
बच्चे की तरह मर गया घर गली के हाथों में
और
"मैं अकेली रह गई..."

लाखों घोड़ों ने
ट्राय के किले के
दरवाज़े खटखटाए
तुम्हारी कुरूप गुड़िया के चुम्बन से
मृत शहर पुनर्जीवित हुआ
पर नहीं बन पाया नया ट्राय

तान्या
नहीं बन पाया हमारा विश्व
गुलाब का एक बगीचा
फूलों का बग़ीचा नहीं बन पाया

बन गया सैनिक क़त्लगाह
फ़िलहाल शान्त हैं हत्यारे
छिपा रहे हैं फ़्रिजों में
सीलबन्द टीन के डिब्बे
आभासहीन ख़ामोशी से
धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं
एक ख़ास वक़्त के इन्तज़ार में

मैं कैसे जीऊँ और लिखूँ
जब सेब नहीं
आकाश से गिरते हों बम
और शहर हो वैसा का वैसा
किसका रक़्त है — जल्लाद के गालों पर
मैं कैसे जीऊँ
जब कोई नई तान्या
विश्व के किसी भी शहर में
हत्यारों के आगमन की प्रतीक्षा में हो

कैसे लिखूँ, क्या लिखूँ मैं
जब कोई नई तान्या
अपनी डायरी में लिख रही हो —
’पहला दिन ...’
’दूसरा दिन ...’
और होगा क्या तीसरा भी ?
कौन जानता है
क्या होगा तीसरे दिन ?

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय