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"काँटे ही काँटे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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लिये सातों जो फेरे
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निशि-वासर
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बन बाँस की फाँस।
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मन के धागे
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बँधे जिसके साथ
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बिना फेरे के
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बस वही समाया
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मन-प्राण में
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हर ले गई ताप
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सभी सन्ताप
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उसकी ही छुवन
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खिला  मन आँगन।
 
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16:49, 19 जून 2018 के समय का अवतरण


बरस बीते
पता अब है चला-
जीना कठिन
जीवन पथ पर
काँटे ही काँटे
लगता यही अब-
मृत्यु सरल
जीवन पथरीला
बड़ा हठीला
पल-पल घुटना
पीना गरल
लिये सातों जो फेरे
बने संत्रास
करकते दिल में
निशि-वासर
बन बाँस की फाँस।
मन के धागे
बँधे जिसके साथ
बिना फेरे के
बस वही समाया
मन-प्राण में
हर ले गई ताप
सभी सन्ताप
उसकी ही छुवन
खिला मन आँगन।