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"उनींदी भोर / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | प्राची के माथे | ||
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+ | उनींदी भोर | ||
+ | मुक्त गुनगुनाती | ||
+ | प्रकृति रानी | ||
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+ | निशा परास्त | ||
+ | पूर्वा की चुनरिया | ||
+ | रवि ने थामी । | ||
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+ | ओ ! तुम कौन | ||
+ | दिशाओं से गाते | ||
+ | संगीत -मौन | ||
+ | 6 | ||
+ | प्रणवाक्षर | ||
+ | ईश गीत, ईश भी | ||
+ | गुंजायमान | ||
+ | 7 | ||
+ | आज फिर से | ||
+ | कर्मयोगी सूरज | ||
+ | निर्लिप्त उगा | ||
+ | 8 | ||
+ | वीणा के तार | ||
+ | बरखा रानी छेड़े | ||
+ | धरा-शृंगार | ||
+ | 9 | ||
+ | धरा - कागद | ||
+ | प्रकृति कवयित्री | ||
+ | मुक्तक लिखे | ||
+ | 10 | ||
+ | बाट निहारे | ||
+ | प्रिय साँझ सवेरे | ||
+ | विषाद घेरे | ||
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10:20, 5 जुलाई 2018 का अवतरण
1
सुखद भोर
खग-गीत गूँजते
मुक्तछंद में।
2
प्राची के माथे
तप्त अधर रखे
प्रातःरवि ने ।
3
उनींदी भोर
मुक्त गुनगुनाती
प्रकृति रानी
4
निशा परास्त
पूर्वा की चुनरिया
रवि ने थामी ।
5
ओ ! तुम कौन
दिशाओं से गाते
संगीत -मौन
6
प्रणवाक्षर
ईश गीत, ईश भी
गुंजायमान
7
आज फिर से
कर्मयोगी सूरज
निर्लिप्त उगा
8
वीणा के तार
बरखा रानी छेड़े
धरा-शृंगार
9
धरा - कागद
प्रकृति कवयित्री
मुक्तक लिखे
10
बाट निहारे
प्रिय साँझ सवेरे
विषाद घेरे