[[Category:चोका]]
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नित वन्दन मैं करती रही हूँ तेरा ही प्रिय मंदिर की पूजा -सा मेरा प्रेम है दीपशिखा -सी जली किया प्रकाश तेरे घर- आँगन,रही पालती मन में यह भ्रममंदिर- सा ही कभी न कभी तुम मेरे देवता प्रसाद में दोगे ही '''प्रेम-अँजुरी'''किन्तु यह क्या मिला !तुम सदैव सशंकित, क्रुद्ध ही और रहते उद्धत उपेक्षा को नहीं जानती तप जिससे होओ तुम प्रसन्न जबकि मैं तो प्रिय हूँ प्रेम-तपस्विनी!
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