"श्री शिवाष्टक / चालीसा" के अवतरणों में अंतर
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'''''श्री शिवाष्टक''''' | '''''श्री शिवाष्टक''''' | ||
+ | आदि अनादि अनंत अखंड अभेद अखेद सुबेद बतावैं। | ||
+ | अलग अगोचर रूप महेस कौ जोगि-जति-मुनि ध्यान न पावैं॥ | ||
+ | आग-निगम-पुरान सबै इतिहास सदा जिनके गुन गावैं। | ||
+ | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥1॥ | ||
− | + | सृजन सुपालन-लय-लीला हित जो बिधि-हरि-हर रूप बनावैं। | |
− | + | एकहि आप बिचित्र अनेक सुबेष बनाइ कैं लीला रचावैं॥ | |
− | + | सुंदर सृष्टि सुपालन करि जग पुनि बन काल जु खाय पचावैं। | |
− | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित | + | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 2॥ |
− | + | अगुन अनीह अनामय अज अविकार सहज निज रूप धरावैं। | |
− | + | परम सुरम्य बसन-आभूषन सजि मुनि-मोहन रूप करावैं॥ | |
− | + | ललित ललाट बाल बिधु बिलसै रतन-हार उर पै लहरावैं। | |
− | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित | + | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 3॥ |
− | + | अंग बिभूति रमाय मसान की बिषमय भुजगनि कौं लपटावैं। | |
− | + | नर-कपाल कर मुंडमाल गल, भालु-चरम सब अंग उढ़ावैं॥ | |
− | + | घोर दिगंबर, लोचन तीन भयानक देखि कैं सब थर्रावैं। | |
− | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित | + | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 4॥ |
− | + | सुनतहि दीनकी दीन पुकार दयानिधि आप उबारन धावैं। | |
− | + | पहुँच तहाँ अविलंब सुदारून मृत्युको मर्म बिदारि भगावैं॥ | |
− | + | मुनि मृकंडु-सुतकी गाथा सुचि अजहुँ बिग्यजन गाई सुनावैं। | |
− | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित | + | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 5॥ |
− | + | चाउर चारि जो फूल धतूरके, बेलके पात औ पानि चढ़ावैं। | |
− | + | गाल बजाय कै बोला जो 'हर हर महादेव' धुनि जोर लगावैं॥ | |
− | + | तिनहिं महाफल देय सदासिव सहजहि भुक्ति-मुक्ति सो पावैं। | |
− | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित | + | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 6॥ |
− | + | बिनसि दोष दुख दुरित दैन्य दारिद्रय नित्य सुख-सांति मिलावैं। | |
− | + | आसुतोष हर पाप-ताप सब निरमल बुद्धि-चित्त बकसावैं॥ | |
− | + | असरन-सरन काटि भवबंधन भव निज भवन भव्य बुलवावैं। | |
− | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित | + | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 7॥ |
− | + | औढरदानि, उदार अपार जु नैकु-सी सेवा तें ढुरि जावैं। | |
− | + | दमन असांति, समन सब संकट, बिरद बिचार जनहि अपनावैं॥ | |
− | + | ऐसे कृपालु कृपामय देव के क्यों न सरन अबहीं चलि जावैं। | |
− | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित | + | बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 8॥ |
− | + | ॥इति श्रीशिवाष्टक सम्पूर्ण॥ | |
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10:56, 30 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
श्री शिवाष्टक
आदि अनादि अनंत अखंड अभेद अखेद सुबेद बतावैं।
अलग अगोचर रूप महेस कौ जोगि-जति-मुनि ध्यान न पावैं॥
आग-निगम-पुरान सबै इतिहास सदा जिनके गुन गावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥1॥
सृजन सुपालन-लय-लीला हित जो बिधि-हरि-हर रूप बनावैं।
एकहि आप बिचित्र अनेक सुबेष बनाइ कैं लीला रचावैं॥
सुंदर सृष्टि सुपालन करि जग पुनि बन काल जु खाय पचावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 2॥
अगुन अनीह अनामय अज अविकार सहज निज रूप धरावैं।
परम सुरम्य बसन-आभूषन सजि मुनि-मोहन रूप करावैं॥
ललित ललाट बाल बिधु बिलसै रतन-हार उर पै लहरावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 3॥
अंग बिभूति रमाय मसान की बिषमय भुजगनि कौं लपटावैं।
नर-कपाल कर मुंडमाल गल, भालु-चरम सब अंग उढ़ावैं॥
घोर दिगंबर, लोचन तीन भयानक देखि कैं सब थर्रावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 4॥
सुनतहि दीनकी दीन पुकार दयानिधि आप उबारन धावैं।
पहुँच तहाँ अविलंब सुदारून मृत्युको मर्म बिदारि भगावैं॥
मुनि मृकंडु-सुतकी गाथा सुचि अजहुँ बिग्यजन गाई सुनावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 5॥
चाउर चारि जो फूल धतूरके, बेलके पात औ पानि चढ़ावैं।
गाल बजाय कै बोला जो 'हर हर महादेव' धुनि जोर लगावैं॥
तिनहिं महाफल देय सदासिव सहजहि भुक्ति-मुक्ति सो पावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 6॥
बिनसि दोष दुख दुरित दैन्य दारिद्रय नित्य सुख-सांति मिलावैं।
आसुतोष हर पाप-ताप सब निरमल बुद्धि-चित्त बकसावैं॥
असरन-सरन काटि भवबंधन भव निज भवन भव्य बुलवावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 7॥
औढरदानि, उदार अपार जु नैकु-सी सेवा तें ढुरि जावैं।
दमन असांति, समन सब संकट, बिरद बिचार जनहि अपनावैं॥
ऐसे कृपालु कृपामय देव के क्यों न सरन अबहीं चलि जावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 8॥
॥इति श्रीशिवाष्टक सम्पूर्ण॥