भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"देवी गीत 8 / रामरक्षा मिश्र विमल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामरक्षा मिश्र 'विमल' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=रामरक्षा मिश्र 'विमल'
+
|रचनाकार=रामरक्षा मिश्र विमल
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=

19:43, 4 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

मइया ......हो ................
तहरा दुअरा अइलीं हम
अबहूँ दुखवा भइल न कम
मनवा होई कब गम गम ......हो
 
तोहरे असरवा में जिनिगी बितवलीं
गइलीं ना दोसरा दुआरी
बड़ुवे हियरा में हुलास,टूटी कबहूँ ना बिस्वास
होई तहरो करेजवा नरम.
 
लछिमी के रूप बरिसावेला धनवा
अगरावे सभकर मनवा
दुखवा कहिया ले मिटी,गम के बादल कब छँटी
जिंदगी होई कहिया सुगम ?
 
तहरे से जग के रचना पालन
तू ही सिवा संहारिनि
तू ही बिस्वमोहिनी माँ,तू काली कपालिनी माँ
बाटे तहरे से सभके करम.
 
सुरसती रुपवा में सांति मिलेला
जिनिगी से ऊबे जब मनवा
दुनिया होखेले मगन,चहके वीणा पर गगन
रहे मनवा में कवनो ना गम.
 
तहरे प लागल नयनवा ए मइया
विमल सरन में आइल
मन में बाजी पैजनी,कहिया छिटकी चांदनी
जिंदगी कहिया चमकी चम चम?