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"खड़े हैं लाखों / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | रक्तपायी पथ में | ||
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+ | बींधती तन-मन | ||
+ | दग्ध जीवन ! | ||
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+ | भाग्य का लेखा | ||
+ | भला करके भी तो | ||
+ | सुख न देखा ! | ||
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+ | तुम्हारी आँखें- | ||
+ | आँसू का समन्दर | ||
+ | पीना मैं चाहूँ। | ||
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+ | पोंछ लो आँखें | ||
+ | सीने में छुप जाओ | ||
+ | क्रूर हैं घेरे । | ||
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+ | यज्ञ रचाया | ||
+ | मन्त्र भी पढ़े सभी | ||
+ | शाप न छूटा। | ||
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+ | जलती रही | ||
+ | समिधा बन नारी | ||
+ | राख ही बची । | ||
+ | 9 | ||
+ | छूटे तो छूटे | ||
+ | चाहे प्राण अपने ! | ||
+ | हाथ न छूटे। | ||
+ | 10 | ||
+ | सिन्धु तरेंगें | ||
+ | विश्वास की है नैया | ||
+ | पार करेंगे। | ||
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03:56, 10 अगस्त 2018 का अवतरण
1
कँटीली राहें
पथरीली चढ़ाई
हाथ थामना !
2
खड़े हैं लाखों
रक्तपायी पथ में
बचके चलो !
3
शंकित दृष्टि
बींधती तन-मन
दग्ध जीवन !
4
भाग्य का लेखा
भला करके भी तो
सुख न देखा !
5
तुम्हारी आँखें-
आँसू का समन्दर
पीना मैं चाहूँ।
6
पोंछ लो आँखें
सीने में छुप जाओ
क्रूर हैं घेरे ।
7
यज्ञ रचाया
मन्त्र भी पढ़े सभी
शाप न छूटा।
8
जलती रही
समिधा बन नारी
राख ही बची ।
9
छूटे तो छूटे
चाहे प्राण अपने !
हाथ न छूटे।
10
सिन्धु तरेंगें
विश्वास की है नैया
पार करेंगे।