भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देश / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यंत कुमार |चिंता / दुष्यंत कु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार | |रचनाकार=दुष्यंत कुमार | ||
− | | | + | |देेेेश / दुष्यंत कुमार |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} |
17:27, 30 अगस्त 2018 का अवतरण
संस्कारों की अरगनी पर टंगा
एक फटा हुआ बुरका
कितना प्यारा नाम है उसका-देश,
जो मुझको गंध
और अर्थ
और कविता का कोई भी
शब्द नहीं देता
सिर्फ़ एक वहशत,
एक आशंका
और पागलपन के साथ,
पौरुष पर डाल दिया जाता है,
ढंकने को पेट, पीठ, छाती और माथा।