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"अनोखे आलिंगन / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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02:48, 31 अगस्त 2018 का अवतरण

1
जब भी रोया
विकल मन मेरा
तुमको पाया।
2
निर्मल बहे
पहाड़ी झरने -सा
प्रेम तुम्हारा।
3
नेह तुम्हारा
सर्दी की धूप जैसा
उँगली फेरे।
3
गूँज रही है
मन-नीरव घाटी
प्रेम-बाँसुरी।
4
प्रेम-अगन
अनोखे आलिंगन
बर्फीली सर्दी।
5
मुझे बुलाए
मूक स्वीकृति-जैसी
तेरी मुस्कान ।
6
लजाई धूप
पलकें ना उठाए
नव वधू -सी
7
अमृत–बूँदें
प्रिय प्रेम तुम्हारा
चाय -चुस्की -सा
8
गर्म लिहाफ़
आँखों में निरन्तर
स्वप्न -शृंखला
9
कोहरा ढके
अठखेलियाँ सारी
प्रिय संग की ।
10
पूष की रातें
पिया तू सीमा पर
सिहरें तन ।