भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अनोखे आलिंगन / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 46: | पंक्ति 46: | ||
कोहरा ढके | कोहरा ढके | ||
अठखेलियाँ सारी | अठखेलियाँ सारी | ||
− | प्रिय संग की । | + | प्रिय -संग की । |
10 | 10 | ||
पूष की रातें | पूष की रातें |
02:51, 31 अगस्त 2018 के समय का अवतरण
1
जब भी रोया
विकल मन मेरा
तुमको पाया।
2
निर्मल बहे
पहाड़ी झरने -सा
प्रेम तुम्हारा।
3
नेह तुम्हारा
सर्दी की धूप जैसा
उँगली फेरे।
3
गूँज रही है
मन-नीरव घाटी
प्रेम-बाँसुरी।
4
प्रेम-अगन
अनोखे आलिंगन
बर्फीली सर्दी।
5
मुझे बुलाए
मूक स्वीकृति-जैसी
तेरी मुस्कान ।
6
लजाई धूप
पलकें ना उठाए
नव वधू -सी
7
अमृत–बूँदें
प्रिय प्रेम तुम्हारा
चाय -चुस्की -सा
8
गर्म लिहाफ़
आँखों में निरन्तर
स्वप्न -शृंखला
9
कोहरा ढके
अठखेलियाँ सारी
प्रिय -संग की ।
10
पूष की रातें
पिया तू सीमा पर
सिहरें तन ।