भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पुतला / प्रमोद धिताल / सरिता तिवारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरिता तिवारी |अनुवादक=प्रमोद धित...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:35, 6 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

आँखें निकालकर
रख देती हूँ डॉअर में
निकालती हूँ मस्तिष्क
और रखती हूँ मेज के ऊपर

अलग करती हूँ सीने से
दुनिया को प्यार करने वाला हृदय
गन्ध, स्वाद, स्पर्श और अनुभूति के
रख देती हूँ एक कोने में सभी इन्द्रियाँ

अलग-अलग करती हूँ
नाड़ी और हथेली
टाँगें और तलवे

नहीं रहेगा बाक़ी
तर्क, विचार और सामान्य विवेक
खोकर सारा निजत्व
रहती हूँ शेष
कंकाल के फ्रेम में चलायमान पुतला
और मिल जाती हूँ भीड़ में

और इस तरह
मैं हुंगी तुम्हारी मनपसन्द

लेकिन माफ़ करना
केवल तुम्हारी मनपसन्दी के लिए
मंजूर नहीं है मुझे
पुतला बनना।