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"नई रोशनी / विष्णु खरे" के अवतरणों में अंतर

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अव्वल चाचा नेहरू आए... जब राहुल दुल्हन लाएँगे
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'''(नागार्जुन, भवानीप्रसाद मिश्र, रघुवीर सहाय के क़दमों में) '''
नई रोशनी वे ही लाए .... नई रोशनियाँ हम पाएँगे
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इन्दू बिटिया उनके बाद.... बहन प्रियंका अलग सक्रिय हैं
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अव्वल चाचा नेहरू आए  
नई रोशनी पाइन्दबाद .... वड्रा जीजू सबके प्रिय हैं
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नई रोशनी वे ही लाए  
हुए सहायक संजय भाई.... ये खुद तो हैं नई रोशनी
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नई रोशनी जबरन आई ..... इनकी भी हैं कई रोशनी
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इन्दू बिटिया उनके बाद  
फिर आए भैया राजीव.... यह जो पूरा खानदान है
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नई रोशनी पाइन्दबाद 
डाली नई रोशनी की नींव.... राष्ट्रीय रोशनीदान है
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आगे बढीं सोनिया गाँधी.... एकमात्र इसकी सन्तानें
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हुए सहायक संजय भाई
पीछे नई रोशनी की आँधी.... नई रोशनी लाना जानें
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नई रोशनी जबरन आई
सत्ता की वे नहीं लालची.... क्या इसमें अब भी कुछ शक़ है
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मनमोहन उनके मशालची.... नई रोशनी इसका ही हक़ है
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फिर आए भैया राजीव
राहुल ने तब तजा अनिश्चय.... जब तक सूरज चान्द रहेगा
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डाली नई रोशनी की नींव
नई रोशनी की गूँजी जय.... यह न कभी भी मान्द रहेगा
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बीच बीच में नई रौशनी के आए दीगर सौदागर
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आगे बढीं सोनिया गाँधी
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सत्ता की वे नहीं लालची
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ये खुद तो हैं नई रोशनी
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यह न कभी भी मान्द रहेगा
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लेकिन इस अन्धियारे को ही वे कर गए दुबारा दूभर
 
लेकिन इस अन्धियारे को ही वे कर गए दुबारा दूभर
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हर दफ़ा इसी कुनबे से गरचे है नई रोशनी सारी
 
हर दफ़ा इसी कुनबे से गरचे है नई रोशनी सारी
 
फिर भी अन्धकार यह बार-बार क्यों हो जाता है भारी?
 
फिर भी अन्धकार यह बार-बार क्यों हो जाता है भारी?
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इनकी ऐसी नई रोशनी में जीवन जीना पड़ता है
 
इनकी ऐसी नई रोशनी में जीवन जीना पड़ता है
 
यह क्लेश कलेजे में जंग-लगे कीले-सा हर पल गड़ता है
 
यह क्लेश कलेजे में जंग-लगे कीले-सा हर पल गड़ता है
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क्या हमीं नहीं मिलकर खींचें अपने हाथों की रेखाएँ
 
क्या हमीं नहीं मिलकर खींचें अपने हाथों की रेखाएँ
 
पहचानें नित नई रोशनी सबकी, उसे ख़ुद लेकर आएँ?
 
पहचानें नित नई रोशनी सबकी, उसे ख़ुद लेकर आएँ?
 
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22:30, 21 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

 (नागार्जुन, भवानीप्रसाद मिश्र, रघुवीर सहाय के क़दमों में)

अव्वल चाचा नेहरू आए
नई रोशनी वे ही लाए
 
इन्दू बिटिया उनके बाद
नई रोशनी पाइन्दबाद

हुए सहायक संजय भाई
नई रोशनी जबरन आई

फिर आए भैया राजीव
डाली नई रोशनी की नींव

आगे बढीं सोनिया गाँधी
पीछे नई रोशनी की आँधी

सत्ता की वे नहीं लालची
मनमोहन उनके मशालची

राहुल ने तब तजा अनिश्चय
नई रोशनी की गूँजी जय

जब राहुल दुल्हन लाएँगे
नई रोशनियाँ हम पाएँगे

बहन प्रियंका अलग सक्रिय हैं
वड्रा जीजू सबके प्रिय हैं

ये खुद तो हैं नई रोशनी
इनकी भी हैं कई रोशनी

यह जो पूरा खानदान है
राष्ट्रीय रोशनीदान है

एकमात्र इसकी सन्तानें
नई रोशनी लाना जानें

क्या इसमें अब भी कुछ शक़ है
नई रोशनी इसका ही हक़ है

जब तक सूरज चान्द रहेगा
यह न कभी भी मान्द रहेगा

बीच बीच में नई रोशनी के आए दीगर सौदागर
लेकिन इस अन्धियारे को ही वे कर गए दुबारा दूभर

हर दफ़ा इसी कुनबे से गरचे है नई रोशनी सारी
फिर भी अन्धकार यह बार-बार क्यों हो जाता है भारी?

इनकी ऐसी नई रोशनी में जीवन जीना पड़ता है
यह क्लेश कलेजे में जंग-लगे कीले-सा हर पल गड़ता है

क्या हमीं नहीं मिलकर खींचें अपने हाथों की रेखाएँ
पहचानें नित नई रोशनी सबकी, उसे ख़ुद लेकर आएँ?