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"इन शब्दों में / मनमोहन" के अवतरणों में अंतर

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लेकिन आप उसे गुज़र न जाने दें<br>
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जो कविता के लिए नहीं
यह भी हमेशा मुमक़िन नहीं<br><br>
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जो कविता के लिए नहीं<br>
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कोई चेहरा याद आता है
किसी से कहने के लिए होता है<br>
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आपके तालू से चिपका होता है<br>
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और आप कुछ देर
कोई चेहरा याद आता है<br>
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कहीं और चले जाते हैं रहने के लिए
या कोई पुरानी शाम<br><br>
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भाई, हर बार रुपक ढूँढ़ना या गढ़ना  
 
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मुमक़िन नहीं होता
और आप कुछ देर<br>
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कई बार सिर्फ़ इतना हो पाता है
कहीं और चले जाते हैं रहने के लिए<br>
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कि दिल ज़हर में डूबा रहे
भाई, हर बार रुपक ढूँढ़ना या गढ़ना <br>
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और आँखें बस कड़वी हो जाएँ
मुमक़िन नहीं होता<br>
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कई बार सिर्फ़ इतना हो पाता है<br>
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कि दिल ज़हर में डूबा रहे<br>
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और आँखें बस कड़वी हो जायें
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20:24, 5 अक्टूबर 2018 का अवतरण

इन शब्दों में
वह समय है जिसमें मैं रहता हूँ

ग़ौर करने पर
उस समय का संकेत भी यहीं मिल जाता है।
जो न हो
लेकिन मेरा अपना है

यहाँ कुछ जगहें दिखाई देंगी
जो हाल ही में ख़ाली हो गई हैं
और वे भी
जो कब से ख़ाली पड़ी हैं

यहीं मेरा यक़ीन है
जो बाक़ी बचा रहा

यानी जो ख़र्च हो गया
वह भी यहीं पाया जाएगा

इन शब्दों में
मेरी बची-खुची याददाश्त है

और जो भूल गया है
वह भी इन्हीं में है

कला का पहला क्षण

कई बार आप
अपनी कनपटी के दर्द में
अकेले छूट जाते हैं

और क़लम के बजाय
तकिये के नीचे या मेज़ की दराज़ में
दर्द की कोई गोली ढूँढ़ते हैं

बेशक जो दर्द सिर्फ़ आपका नहीं है
लेकिन आप उसे गुज़र न जाने दें
यह भी हमेशा मुमक़िन नहीं

कई बार एक उत्कट शब्द
जो कविता के लिए नहीं
किसी से कहने के लिए होता है
आपके तालू से चिपका होता है
और कोई नहीं होता आसपास

कई बार शब्द नहीं
कोई चेहरा याद आता है
या कोई पुरानी शाम

और आप कुछ देर
कहीं और चले जाते हैं रहने के लिए
भाई, हर बार रुपक ढूँढ़ना या गढ़ना
मुमक़िन नहीं होता
कई बार सिर्फ़ इतना हो पाता है
कि दिल ज़हर में डूबा रहे
और आँखें बस कड़वी हो जाएँ