{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=हरी घास पर क्षण भर / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}
::::क्वाँर की बयार चली,
शशि गगन पार हँसे न हँसे--
::::शेफ़ाली शेफाली आँसू ढार चली !
नभ में रवहीन दीन--
::::बगुलों की डार चली;
::::पर मैं बात हार चली !
'''इलाहाबाद, अक्टूबर, 1948'''
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