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मानस-मधुवन मंे आया है सजनि! आज वेदना-वसंत।
विपुल व्यथा की सकरुण सुषमा छाय रही है आज अनंत॥
करुणा-कोकिल सुना ही है अपना विह्वल विकल विहाग।
नयन-कली की मृदु प्याली में भरा हुआ है अश्रु-पराग॥
चलता है उच्छ्वास-मलय नैराश्यों की सौरभ के साथ।
ढुलका रहा विषाद हृदय की हाला भर-भर दोनों हाथ॥
अन्तर के छाले पलाश वन-सम शोभित हैं अरुण अपार।
व्याप्त हो रहा है मधुमय पीड़ाओं के वैभव का भार॥
कितना सुन्दर कुसुमाकर का विश्वमलयज-कुंज शीतलता भार लिये, नव-कलिका सा मृदु प्यार लिये।मम आशा की मधुमय कलियाँ बनकर बसंत विकसा जाना॥बासंती सी मृदु सुषमा ले पुप्पांे सी मधु लालिमा लिये।मम सूखे जीवन उपवन में आजाना।मधु-सीकर बन के बरस जाना॥ शुचि सरस सुकोमल भावों की, कालिन्दी कलित कलोलमयी-सरस सुकोलम भावों की, कालिन्दी कलित कलोलमयी-बनकर मेरे कल्पना-देश में, देव! प्रवाहित हो जाना।नव वीणा की झंकार लिये, मृदु अतीत गौरव-गान लिये-वह भूला मोहक मधुर गान, बन जीवन-सार सुना जाना॥ शुचि स्वर्ण का विभव लिये सुख का अक्षय आभास लिये-मेरी अलसाई पलकों पर कितना मादक तुम चिरनिद्रा बन छा जाना।स्वर्गिक अनन्त सौंन्दर्य्य लिये, क्रीड़ा का हास-विलास लिये-कोमल अलसित-सुषमा-लज्जित-निज मंजु रूप दिखला जाना॥ वरदानों का उपहार लिये, आशीष-सुधा की धार लिये-मेरे मधुवन हृद््-मंदिर में उसका मुसकाना॥आकर आराध्य! सुशोभित हो जाना।मुसकानों का संसार लिये, आनन्दमयी झंकार लिये-पीड़ा से पागल प्राणों को, प्रिय! आकर आह हँसा जाना॥ कमनीय कलित सुविकाश लिये, ऊषा-सा अरुण प्रकाश लिये-बनकर सुप्रभा-सौभाग्य सूर्य्य ‘नलिनी’ का हृदय खिला जाना।
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