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"मुस्कराते हुए चेहरे हसीन लगते हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | अपने बच्चे तो सभी को हसीन लगते हैं | ||
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+ | हुस्न की बात नहीं, बात है भरोसे की | ||
+ | फूल से ख़ार कहीं बेहतरीन लगते हैं | ||
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00:27, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
मुस्कराते हुए चेहरे हसीन लगते हैं
वरना इन्सान भी जैसे मशीन लगते हैं
दूसरों की खुशी, ग़म में शरीक जो होते
वही क़ाबिल, वही मुझको ज़हीन लगते हैं
जो हवाओं का साथ पा के फिर निकल जाते
ऐसे बादल भी मुझे अर्थहीन लगते हैं
उनसे उम्मीद थी लोगों के काम आयेंगे
पर, वो अपने ग़ुरूर के अधीन लगते हैं
धूल में खेलते बच्चे को उठाकर देखेा
अपने बच्चे तो सभी को हसीन लगते हैं
हुस्न की बात नहीं, बात है भरोसे की
फूल से ख़ार कहीं बेहतरीन लगते हैं