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शिकवा / इक़बाल

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<poem>
'''टिप्पणी: शिकवा इक़बाल की शायद सबसे चर्चित रचना है जिसमें उन्होंने मुस्लिमों इस्लाम के स्वर्णयुग को याद करते हुए ईश्वर से मुसलमानों की तात्कालिक हालत के बारे में शिकायत की है ।'है। यह 1909 में प्रकाशित हुई थी। ''
क्यूँ ज़ियाकार ज़ियांकार बनूँ, सूद फ़रामोश रहूँफ़िक्र-ए-फर्दा फ़र्दा<ref>कल की चिन्ता</ref> न करूँ, महव<ref>खोया रहना</ref>-ए-ग़म-ए-दोश रहूँनाले बुलबुल की सुनूँ और हमअतंगोश हमा-तन-गोश<ref>चुपचाप सुनना </ref> रहूँहमनवाँ हमनवा<ref> साथी</ref> मैं भी कोई गुल हूँ के ख़ामोश रहूँ ।रहूँ।
फ़िक्र-ए-फ़र्दा - कल की चिन्ता । महव - खोया रहना ।  जुरत-आमोज़ <ref>साहस सिखाने वाला</ref> मेरी ताब-ए-सुख़न <ref>बातों का तेज</ref> है मुझको
शिकवा अल्लाह से ख़ाकम बदहन है मुझको
ऐ ख़ुदा, शिकवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा भी सुन ले
ख़ूगर-ए-हम्ज़ हम्द <ref>प्रशंसा करने के आदी</ref> से थोड़ा सा ग़िला भी सुन ले ।ले।
थी तो मौजूद अज़ल <ref>आदि</ref> से ही तेरी ज़ात-ए-क़दीम<ref> पुराने प्राणी </ref>फूल था ज़ेब-ए-चमन, पर न परेशान थी शमीम <ref> सुगंध</ref>।शर्त-ए-इंसाफ़ है ऐ साहिब-ए-अल्ताफ़-ए-अमीं अमीम <ref>सार्वभौमिक, स्र्वोपरि. यहाँ पर मतलब ईश्वर या अल्लाह से है। </ref>।बू-ए-गुल फैलती किस तरह जो होती न नसीम <ref>पवन</ref>
हमको जमहीयत-ए-ख़ातिर ये परेशानी थी
वरना उम्मत तेरी महबूब की दीवानी थी ।थी।
हमसे पहले था अजब तेरे जहाँ का मंजरमंज़र। कहीं थे मस्जूद ते <ref>पूज्य (जिसका सजदा किया जाय)</ref> थे पत्थर, कहीं माबूद <ref>पूज्य</ref> शजर<ref>पेड़</ref>। खूगरख़ूगर-ए-पैकर-ए-महसूस <ref>महसूस कर सकने वाली आकृति को (पूजने की) आदी </ref> थी इंसा की नज़रनज़र। मानता फ़िर कोई अनदेखे खुदा को कोई क्यूंकर?
मअबूद तुझको मालूम है लेता था कोई नाम तेरा। कुव्वत- पूज्य, मस्जूद - पूज्य (जिस्का सजदा बाज़ू-ए-मुस्लिम ने किया जाय), शज़रकाम तेरा।
तुझको मालूम है लेता था कोई नाम तेराबस रहे थे यहीं सल्जूक<ref>उत्तरपश्चिमी ईरान और पूर्वी तुर्की में दसवीं सदी का एक साम्राज्य, शासक तुर्क मूल के थे</ref> भी, तूरानी<ref>मध्य-एशियाई </ref> भी। कुव्वतअहल-ए-बाज़ू-ए-मुस्लिम ने किया काम तेराचीं चीन में, ईरान में सासानी<ref>अरबों की ईरान पर फ़तह के ठीक पहले के शासक, अग्निपूजक पारसी, अमुस्लिम</ref> भी। इसी मामूरे में आबाद थे यूनानी भी। इसी दुनिया में यहूदी भी थे, नसरानी<ref>ईसाई</ref> भी।
बस रहे थे यहीं सल्जूक भी, तूरानी भी ।पर तेरे नाम पर तलवार उठाई किसने?अहल-ए-चीं चीन में, ईरान में सासानी भी ।इसी मामूरे में आबाद थे यूनानी भी ।इसी दुनिया में यहूदी भी थे, नसरानी भी । सल्जूक - उत्तरपश्चिमी ईरान और पूर्वी तुर्की में दसवीं सदी का एक साम्राज्य, शासक तुर्क मूल के थे । सासानी - अरबों की ईरान पर फ़तह के ठीक पहले के शासक, अग्निपूजक पारसी, अमुस्लिम ।बात जो बिगड़ी हुई थी वो बनाई किसने?
पर थे हमीं एक तेरे नाम पर तलवार उठाई किसने ?मअर का आराओं में। बात जो बिगड़ी हुई थी वो बनाई किसने ?खुश्कियों में कभी लड़ते, कभी दरियाओं में। दी अज़ानें कभी योरोप के कलीशाओं<ref>चर्च, गिरिजाघर</ref> में। कभी अफ़्रीक़ा के तपते हुए सेहराओं<ref>रेगिस्तान</ref> में।
थे हमीं एक तेरे मार का आराओं में ।खुश्कियों में कभी लड़ते, कभी दरियाओं में ।दी अज़ानें कभी योरोप के कलीशाओं में ।कभी अफ़्रीक़ा के तपते हुए सेहराओं में ।  कलीशा - चर्च, गिरिजाघर । सेहरा - रेगिस्तान । शान आँखों में न जँचती थी जहाँदारों कीकी। कलेमा <ref> ये कहना कि 'अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका संदेशवाहक था', इस्लाम का सबसे ज्यादा प्रयुक्त वंदनवाक्य</ref> पढ़ते थे हम छाँव में तलवारों की ।की।
कलेमा - ये कहना कि 'अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका संदेशवाहक था', इस्लाम का सबसे ज्यादा प्रयुक्त वंदनवाक्य ।
 
हम जो जीते थे, तो जंगों की मुसीबत के लिए
और मरते थे तेरे नाम की अज़मत <ref>महानता</ref> के लिए ।लिए।
थी न कुछ तेग़ ज़नी अपनी हुकूमत के लिए
सर बकफ़ <ref> हथेली पर</ref> फिरते थे क्या दहर <ref>दुनिया</ref> में दौलत के लिए ?  बकफ़ - हथेली पर
कौम अपनी जो ज़रोमाल-ए-जहाँ पर मरती
बुत फरोशी के तेवर एवज़ बुत-शिकनी क्यों करती ?
टल न सकते थे अगर जंग में अड़ जाते थे।
पाँव शेरों के भी मैदां से उखड़ जाते थे।
तुझ से सरकश हुआ कोई तो बिगड़ जाते थे।
तेग़<ref>तलवार</ref> क्या चीज़ है, हम तोप से लड़ जाते थे।
टल न सकते थे अगर जंग नक़्श तौहीद<ref>त'वाहिद, एकत्व. यानि ये कहना कि अल्लाह एक है और उसके तस्वीर या मूर्तियां नहीं हैं, अरबी गिनती में अड़ जाते थेपाँव शेरों के भी मैदां से उखड़ जाते थे ।तुझ से वाहिद का अर्थ 'एक' होता है। </ref> का हर कश हुआ कोई तो बिगड़ जाते थेदिल पे बिठाया हमने। तेग क्या चीज़ है, हम तोप से लड़ जाते थे ।तेरे ख़ंज़र लिए पैग़ाम सुनाया हमने।
तेग़ तू ही कह दे के, उखाड़ा दर- तलवारए-ख़ैबर<ref> ख़ैबर मदीना के पास एक स्थान है, जहाँ यहूदी रहा करते थे। अन्य यहूदियों के साथ सांठगाँठ करने के शक में मुस्लिम सेना को पैग़म्बर मुहम्मद ने इनपर आक्रमण का हुकम दिया। युद्ध में यहूदी हार गए और इस लड़ाई को उस समय और आज भी एक प्रतीकात्मक विजय के रूप में देखा जाता है। उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में पेशावर के पास का दर्रा भी इसी नाम से है, जिससे होकर कई विदेशी आक्रांता भारत आए; सिकंदर, बाबर और नादिर शाह इनमें से कुछ उल्लेखनीय नाम हैं। </ref> किसने?शहर कैसर<ref>सीज़र का अरबी नाम, सीज़र रोम के शासक की उपाधि होती थी - जूलयस सीज़र, ऑगस्टस सीज़र आदि </ref> का जो था, उसको किया सर किसने?तोड़े मख़्लूक<ref>बनाया हुआ, कृत्रिम। इस्लाम के मुताबिक ईश्वर की वंदना उचित है और ईश्वर के रूपक (तस्वीर, मूर्ति ) अर्थात बनाई गए चीज़ों की वंदना अनुचित। इन ईश्वर द्वारा बनाई गई चीजों में सूर्य, चांद, पेड़, कोई व्यक्ति इत्यादि आते हैं जिसकी वंदना स्वीकार्य नहीं है। </ref> ख़ुदाबन्दों के पैकर<ref>आकृति, स्वरूप</ref> किसने?काट कर रख दिये कुफ़्फ़ार<ref>काफ़िर का बहुवचन</ref> के लश्कर<ref>सेना</ref> किसने?
नक़्श तौहीद का हर दिल पे बिठाया हमने किसने ठंडा किया आतिशकदा<ref>अग्निगृह, इस्लाम के पूर्व ईरान के लोग आग और देवी-देवताओं की पूजा करते थे</ref>-ए-ईरां को?तेरे ख़ंज़र लिए पैग़ाम सुनाया हमने ।किसने फिर ज़िन्दा किया तज़कर-ए-यज़दां को?
तौहीद कौन सी क़ौम फ़क़त<ref> सिर्फ़</ref> तेरी तलबगार हुई?और तेरे लिए जहमतकश- त'वाहिद, एकत्व. यानि ये कहना कि अल्लाह एक है और उसके स्वरूप, तस्वीर, मूर्तियां या अवतार नहीं हैंए-पैकार हुई?किसकी शमशीर<ref>तलवार</ref> जहाँगीर, अरबी गिनती में वाहिद का अर्थ 'एक' होता है ।जहाँदार हुई?किसकी तक़दीर से दुनिया तेरी बेदार हुई?
तू ही कह दे किसकी हैबत <ref>डर</ref> से सनम<ref>मूर्तियाँ</ref> सहमे हुए रहते थे?मुँह के, उखाड़ा दरबल गिरके 'हु अल्लाह--ख़ैबर किसने?शहर कैसर का जो था, उसको किया सर किसने?तोड़े मख़्लूक ख़ुदाबन्दों के पैकर किसने?काट कर रख दिये कुफ़्फ़ार के लश्कर किसने?अहद' कहते थे।
ख़ैबर - उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान आ गया ऐन लड़ाई में पेशावर अगर वक़्त-ए-नमाज़क़िब्ला रू हो<ref>मक्के के पास का दर्रा जिससे रुख होकर कई विदेशा आक्रांता भारत आए; सिकंदर, बाबर और नादिर शाह इनमें से कुछ उल्लेखनीय नाम हैं । कैसर </ref> के ज़मीं- सीज़र का अरबी नामबोस<ref>जमीन चूमना, सीज़र रोम अर्थ सजदे के शासक की उपाधि होती थी । पैकर लिए झुकने से है। </ref> हुई क़ौम- आकृति, स्वरूप । कुफ़्फ़ार - काफिरों हिजाज़ <ref>मुस्लिम क़ौम। हिजाज़ वो अरबी प्रांत है जिसमें मक्का और मदीना हैं। </ref>लश्कर एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद - सेना ।ओ- अयाज़ <ref> अयाज़ नाम का सुल्तान महमूद ग़ज़नी का एक ग़ुलाम था जिसकी बन्दगी से ख़ुश होकर सुल्तान ने उसे शाह का दर्जा दिया था और लाहौर को सन् १०२१ में बड़ी मुश्किलों से जीतने के बाद, उसे वहाँ का राजा बनाया था। </ref>न कोई बन्दा रहा, और न कोई बन्दा नवाज़।
किसने ठंडा किया आतिशकदा-ए-ईरां को ?बन्दा ओ साहिब ओ मोहताज़ ओ ग़नी <ref> धनाढ्य, संपन्न </ref>एक हुएकिसने फिर ज़िन्दा किया दज़तराए-ए-यज़दां को ?तेरी सरकार में पहुँचे तो सभी एक हुए।
आतिशकदा महफिल- अग्निगृहए-कौन-ओ मकामे सहर-ओ-शाम फ़िरेमय-ए-तौहीद को लेकर सिफ़त-ए-जाम फिरे। कोह-में दश्त <ref> रेत, इस्लाम के पूर्व ईरान के लोग आग रेगिस्तान </ref> में लेकर तेरा पैग़ाम फिरेऔर देवी-देवताओं की पूजा करते थे ।मालूम है तुझको कभी नाकाम फिरे?
कौन सी क़ौम फ़क़त तेरी तलबगार हुई ?और तेरे लिए जहमतकशदश्त-तो- पैकार हुई ?किसकी शमशीर जहाँगीरदश्त हैं, जहाँदार हुई ?दरिया भी न छोड़े हमने। किसकी तक़दीर से दुनिया तेरी बेदार हुई ?दहर-ए-ज़ुल्मात में दौड़ा दिये घोड़े हमने।
सिफ़हा-ए-दहर<ref>दुनिया का चेहरा</ref> से बातिल<ref>असत्य, शून्य। ये मानना के दुनिया को चलाने वाला कोई नहीं है। अनिस्लमी। फ़कत </ref> को मिटाया हमने। दौर- सिर्फ़ । शमशीर - तलवार ।इंसा को ग़ुलामी से छुड़ाया हमने। तेरे काबे को ज़बीनों <ref>भौंह</ref> पे बसाया हमनेतेरे क़ुरआन को सीनों से लगाया हमने।
किसकी हैमत से सनम सहमे हुए रहते थे फिर भी हमसे ये ग़िला है कि वफ़ादार नहीं?मुँह के बल गिरके 'हु अल्लाह-ओ-अहद' कहते थे ।हम वफ़ादार नहीं, तू भी तो दिलदार नहीं।
आ गया ऐन लड़ाई में अगर वक़्तउम्मतें और भी हैं, उनमें गुनहगार भी हैं। इजज़<ref>कमज़ोरी</ref> वाले भी हैं, मस्त-ए-नमाज़हिब्ला रूहों के ज़मीं बोश हुई क़ौममय-ए-हिजाज़ ।एक ही सम्त में खड़े हो गए महमूद पिन्दार <ref>अभिमानी, शब्दार्थ -ओ- अयाज़घमंड के नशे में मस्त</ref> भी हैं। न कोई बन्दा रहाइनमें काहिल भी है, और न कोई बन्दा नवाज़ ।ग़ाफ़िल<ref>नादान </ref> भी हैं, हुशियार भी हैसैकड़ों हैं कि तेरे नाम से बेदार भी है।
बन्दा ओ साहिब ओ मोहताज़ ओ ग़नी एक हुएरहमतें हैं तेरी सरकार में पहुँचे अग़ियार<ref>दुश्मन</ref> के काशानों पर। बर्क गिरती है तो सभी एक हुए ।बेचारे मुसलमानों पर।
महफिल-ए-कौन-ओ मकामे सहर-ओ-शाम फ़िरेबुत सनमख़ानों में कहते हैं मुसलमान गए। महलहै खुशी उनको कि काबे के निगहबान गए। मंजिले-ए-तौहीद को लेकर सिफ़त-ए-जाम फिरे ।दहर से ऊँटों के हदीख़्वान गए। कोह-अपनी बगलों में दश्त में लेकर तेरा पैग़ाम फिरेऔर मालूम है तुझको कभी नाकाम फिरे ?दबाए हुए क़ुरान गए।
दश्त-तो-दश्त हैंज़िंदाज़न कुफ़्र है, दरिया भी न छोड़े हमनेएहसास तुझे है कि नहीं?दहर-ए-ज़ुल्मात में दौड़ा दिये घोड़े हमने ।अपनी तौहीद का कुछ पास<ref>बचाने की चिंता </ref> तुझे है कि नहीं?
सफ़ाये शियाकत नहीं, हैं उनके ख़ज़ाने मामूर। नहीं महफिल में जिन्हें बात भी करने का शअउर। कहर तो ये है कि काफिर को मिले रुद--दहर से क़ातिल खुसूर। और बेचारों मुसलमानों को मिटाया हमने दौरफ़कत वादा-ए-इंसा को ग़ुलामी से छुड़ाया हमने ।तेरे काबों को जबीनों पे बसाया हमनेतेरे क़ुरान को सीनों से लगाया हमने ।हूर।
फिर भी हमसे अब वो अल्ताफ़<ref>दया</ref> नहीं, हम पे इनायात<ref> मेहरबानी </ref> नहींबात ये ग़िला क्या है कि वफ़ादार पहली सी मुदारात नहीं ?हम वफ़ादार नहीं, तू भी तो दिलदार नहीं ।
उम्मतें और भी हैं, उनमें गुनहगार भी हैंहिज़ वाले भी हैं, मस्तक्यों मुसलमानों में है दौलत-ए-मय-ए-पिन्दार भी हैं ।दुनिया नायाब?इनमें काहिल भी तेरी कुदरत तो हैवो, ग़ाफ़िल भी हैं, हुशियार भी जिसकी न हद हैन हिसाब। सैकड़ों हैं कि तेरे नाम तू जो चाहे तो उठे सीना-सहरा से बेदार भी है हुबाब<ref>बुलबुला </ref>रहरव-ए-दश्त सैली ज़ दहा मौज-ए सराब।
रहमतें हैं तेरी बाम-ए-अगियार के काशानों परहै, रुसवाई है, नादारी है। बर्क गिरती क्या तेरे नाम पे मरने का एवज़ ख़्वारी है तो बेचारे मुसलमानों पर ।?
बुत सनमख़ानों में कहते मुसलमान गएबनी अगियार की अब चाहने वाली दुनिया। है खुशी उनको कि काबे के निगहबान गए ।रह गई अपने लिए एक ख़याली दुनिया। मंजिले-ए-दहर से ऊँटों के गुनीख़्वान गएअपनी बगलों में दबाए हम तो रुख़सत हुए क़ुरान गए ।, औरों ने संभाली दुनिया। फ़िर न कहना कि हुई तौहीद से खाली दुनिया।
अंददन कुफ़्र है, एहसास तुझे है हम तो जीते हैं कि नहींदुनिया में तेरा नाम रहे। अपनी तौहीद का कुछ फाज तुझे कहीं मुमकिन है कि नहींसाक़ी न रहे, जाम रहे?
ये शियाकत नहीं, हैं उनके ख़ज़ाने मामूरनहीं तेरी महफिल में जिन्हें बात भी करने का शअउरगई चाहनेवाले भी गए। कहर तो ये है कि काफिर को मिले रुद-ओ-खुसूरशब की आहें भी गईं, जुगनूं के नाले भी गए। दिल तुझे दे भी गए, अपना सिला ले भी गए। आ के बैठे भी न थे और बेचारों मुसलमानों को फ़कत वाबा-ए-हुज़ूर निकाले भी गए।
अब वो अल्ताफ़ नहींआए उश्शाक़ <ref>आशिक़ का बहुवचन</ref>, हमपे नायास महींगए वादा-ए-फ़रदा लेकर। बात ये क्या है कि पहली सी मुदारात नहीं ?अब उन्हें ढूँढ चराग-ए-रुख़-ज़ेबा लेकर।
क्यों मुसलमानों में है दौलतदर्द-ए-दुनिया नायाबतेरी कुदरत तो है वोलैला भी वही, जिसकी न हद है न हिसाबतू जो चाहे तो उठे सीनाक़ैस <ref>लैला-सहरा से हुबाबमजनूं की कहानी में मजनूं का वास्तविक नाम क़ैस था। मजनूं का नाम उसे पाग़ल बनने के बाद मिला। अरबी भाषा में मजनून का शाब्दिक अर्थ पागल होता है। </ref> का पहलू भी वही। रहरवानज्द <ref>मध्य अरब का रेगिस्तान </ref>के दश्त--दश्त शाली जदाजबल में रम-ए मौज-आहू <ref>हिरण की चौकड़ी </ref> भी वही। इश्क़ का दिल भी वही, हुस्न का जादू भी वही। उम्मत-ए सराब-अहमद-मुरसल भी वही, तू भी वही।
बामफिर ये आजुर्दगी<ref>चिढ़ाना</ref>, ये ग़ैर-ए-अगियार है, रुसवाई है, नादारी हैसबब क्या मानी?अपने शऽदाओं पर ये चश्म-ए-ग़ज़ब क्या तेरे नाम पे मरने के एवज़ भारी है मानी?
रह गई अपने लिए एक खयाली दुनियातुझकों छोड़ा कि रसूल-ए-अरबी <ref>अरब का पैग़म्बर, यानि मुहम्मद </ref> को छोड़ा?हम तो रुक़सत हुएबुतगरी पेशा किया, औरों ने संभाली दुनियाबुतशिकनी<ref>मूर्तियों को तोड़ना</ref> को छोड़ा?फ़िर न कहना कि दुनिया तोहीद से खाली हुई ।इश्क को, इश्क़ की आशुफ़्तासरी <ref>रोमांच, पुलक</ref> को छोड़ा?रस्म-ए-सलमान-ओ-उवैश-ए-क़रनी<ref>क़रनी, सीरिया के उवैश जो इस्लाम के शुरुआती परिवर्तितों में थे। हज़रत अली के समर्थन में उन्होंने कर्बला की लड़ाई लड़ी और जिसमें वो शहीद हुए थे। </ref> को छोड़ा?
हम तो जीते हैं आग तकबीर <ref>ये स्वीकारना कि दुनिया अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका दूत था </ref> की सीनों में तेरा नाम रहेदबी रखते हैंकहीं मुमकिन है कि साक़ी न रहे, जाम रहे ?ज़िंदगी मिस्ल-ए-बिलाल-ए-हबसी रखते हैं।
तेरी महफिल भी गई चाहनेवाले भी गएशब इश्क़ की आहें भी गईंख़ैर, जुगनूं के नाले वो पहली सी अदा भी गएन सहीदिल तुझे दे ज्यादा पैमाई-ए-तस्लीम-ओ-रिज़ा भी गए अपना सिला ले भी गएन सही। आके बैठे मुज़्तरिब<ref>बेचैन</ref> दिल सिफ़त-ए-क़िबलानुमा भी न थे सहीऔर गिला ले पाबंदी-ए-आईन<ref>विधान, नियम</ref>-ए-वफ़ा भी गएन सही।
आए उश्शाककभी हमसे कभी ग़ैरों से शनासाई <ref>अपना, गए वादा-ए-फरदा लेकरजुड़ा</ref> है। अब उन्हें ढूँढ चराग-ए-रुख़-ज़ेबा लेकरबात कहने की नहीं, तू भी तो हरजाई है।
दर्दसर-ए-लैला भी वहीं, क़ैस का पहलू भी वहीफ़ाराँ पे किया दीन को कामिल तूने। नज्द इक इशारे में हज़ारों के दश्त-ओ-जबल में रम-ए-आहू भी वहीलिए दिल तूने। आतिश अंदोश किया इश्क़ का दिन भी वही, हुस्न का जादू भी वहीहासिल तूने। उम्मतफ़ूँक दी गर्मी-ए-अहद-मुरसल भी वही, तू भी वहीरुख्सार से महफ़िल तूने।
फ़िर ये आज गुस्तगी, ये ग़ैर-ए-सबब क्याक्यूँ सीने हमारे शराराबाज़ नहीं?अपने शहदारो पर ये चश्म -ए-ग़ज़ब क्याहम वही सोख़्ता सामां हैं, तुझे याद नहीं?
तुझकों छोड़ा कि रस्मवादी ए नज्द में वो शोर-ए-अरबी को छोड़ासलासिल <ref>जंज़ीर </ref> न रहा। बुतगरी पेशा किया, बुतशिकनी को छोड़ाइश्क को, इश्क़ की आसुक्ताशरी को छोड़ारस्मक़ैस दीवाना-ए-सलमानोनज़्ज़ारा-कुवैशए-महमिल न रहा। हौसले वो न रहे, हम न रहे, दिल न रहा। घर ये उजड़ा है कि तू रौनक-ए-करनी को छोड़ामहफ़िल न रहा।
आग तपती सी सीनों में दबी रखते हैंऐ ख़ुश आं रूज़ के आइ व बसद नाज़ आई। ज़िंदगी मिस्लबे हिजाबाने सू-ए-बिलालमहफ़िल-ए-हवसी रखते हैं ।मा बाज़ आई।
इश्क़ की ख़ैरबादाकश ग़ैर हैं, वो पहली सी अदा गुलशन में लब-ए-जू <ref>झरने के किनारे </ref> बैठेसुनते हैं जाम बकफ़<ref>हथेली पर </ref>, नग़मा-ए-कू-कू बैठे। दूर हंगामा-ए-गुल्ज़ार से यकसू <ref>एक तरफ़ </ref> बैठेतेरे दीवाने भी न सहीहै मुंतज़िर-ए-हू बैठे।  अपने परवानों को फ़िर ज़ौक-ए-ख़ुदअफ़रोज़ी<ref>खुद को जलाने का मज़ा</ref> दे। ज्यादा पैमाई बर्के दैरीना<ref>पुरानी बिज़ली</ref> को तस्लीमफ़रमान-ए-रिज़ा भी न सही ।जिगर सोज़ी दे।  क़ौम-ए-आवारा इनां ताब है फिर सू-ए-हिजाज़। ले उड़ा बुलबुल-ए-बेपर को मदाके परवाज। मुज़्तरिब दिल सिफ़तबाग़ के हर गुंचे में है बू-ए-ख़िबलानुमा भी न सहीनियाज़। तू ज़रा छेड़ तो दे तश्ना मिज़राब-ए-साज।  नगमें बेताब हैं तारों से निकलने के लिए। तूर मुज्तर हैं उसी आग में जलने के लिए।  मुश्किलें उम्मत-ए-मरहूम<ref>हारे हुए लोगों की उम्मत, यहाँ पर अर्थ - इस्लाम</ref> की आसां कर दे। मूर-ए-बेमायां को अंदोश-ए-सुलेमां कर दे। जिन्स-ए-नायाब-ए-मुहब्बत<ref>ऐसे दुर्लभ प्रेमियों (यहाँ पर अर्थ मुस्लमानों से है)</ref> को फ़िर अरज़ां<ref>सुलभ, सस्ता</ref> कर देहिन्द के दैर नशीनों<ref>पुराने देवियो की ख़िदमत करने वाले</ref> को मुसल्मां कर दे।  जू-ए-ख़ून मीचकद अज़ हसरते दैरीना मा। मीतपद नाला ब-निश्तर कदा-ए-सीना मा। <ref> फ़ारसी में लिखी पंक्ति का अर्थ है - ख़ून की धार हमारी पुरानी हसरतों से निकलती है, और पाबंदी सीने के हत्यागार से हमारे चीखने की आवाज़ आती है। (अपूर्ण अनुवाद है। ) </ref> बू-आईना -गुल ले गई बेरूह-वफ़ा -चमन राज़-ए-चमन। क्या क़यामत है कि ख़ुद फूल हैं ग़माज़-ए-चमन। अहद-ए-गुल ख़त्म हुआ टूट गया साज़-ए-चमन। उड़ गए डालियों से जमजमा-ए-परवाज़-ए-चमन।  एक बुलबुल है कि है महव-ए-तरन्नुम<ref>संगीत में खोया </ref> अबतक। इसके सीने में हैं नग़मों का तलातुम<ref>तूफ़ान</ref> अबतक।  क़ुमरियां साख़-ए-सनोबर<ref>पाईन, एक प्रकार का पेड़। </ref> से गुरेज़ां भी हुई। पत्तिया फूल की झड़-झड़ की परीशां भी हुई। वो पुरानी रविशें बाग़ की वीरां भी हुई। डालियां पैरहन-ए-बर्ग <ref>पत्तियों का पहनावा</ref> से उरियां भी हुई।  क़ैद ए मौसम से तबीयत रही आज़ाद उसकी। काश गुलशन में समझता कोई फ़रियाद उसकी।  लुत्फ़ मरने में है बाक़ी, सही मज़ा जीने में। कुछ मज़ा है तो यही ख़ून-ए-जिगर पीने में। कितने बेताब हैं जौहर मेरे आईने में किस क़दर जल्वे तड़पते है मेरे सीने में।
कभी हमसे कभी ग़ैरों से शनासाई हैइस गुलिस्तां में मगर देखने वाले ही नहीं। बात कहने की नहीं, तू भी तो हरजाई है ।दाग़ जो सीने में रखते हैं वो लाले ही नहीं।
सरचाक इस बुलबुल ए तन्हा की नवां से दिल होंजागने वाले इसी बांग-ए-फ़ाराँ दरा से किया दीन को कामिल तूनेइक इशारे में हज़ारों के लिए दिल तूने ।हों। आतिश अंदोश किया इश्क़ का हासिल तूनेफ़ूँक दी गर्मीयानि फ़िर ज़िन्दा ना अहद-ए-रुक्सार वफ़ा से महफिल तूनेदिल होंफिर उसी बादा ए तेरी ना के प्यासे दिल हों।
आज क्यूँ सीने हमारे शराराबाज़ नहींअजमी ख़ुम है तो क्या, मय तो हिजाज़ी<ref> अरब का प्रांत जिसमें मक्का और मदीना हैं </ref> है मेरी। हम वह शोख़ सा दामांनग़मा हिन्दी है तो क्या, तुझे याद नहीं ?लय तो हिजाज़ी है मेरी।
</poem>
(कविता ख़त्म नहीं हुई और इसमें में बहुत सी अशुद्धियाँ है । इन्हें है। शब्दार्थों के साथ शीघ्र ही सुधारा जाएगा । तथा शोधन में सहयोग का स्वागत है।){{KKMeaning}}
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