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हरसिंगार हुआ जीवन / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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04:25, 21 जनवरी 2019
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हरसिंगार हुआ जीवन
भागमभाग
सुबह से मचती
रोज़ शहर में
हाट, सड़क
मंदिर, विद्यालय
घर, दफ़्तर में
दिनभर सब की कनपट्टी पर
समय रखे रहता है गन
देर शाम
जब थककर सूरज आया करता
चंदा तारों से घर जगमग
पाया करता
तब जादू का काढ़ा पीकर
लौटे सूरज का बचपन
फूल हँसी के
देर रात तक महका करते
पर छूते ही पहली किरणें
सब हैं झरते
है अजीब
इस युग का साँचा
पर ढलता जाता तन-मन
</poem>
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