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"हरसिंगार हुआ जीवन / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | जब थककर सूरज आया करता | ||
+ | चंदा तारों से घर जगमग | ||
+ | पाया करता | ||
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+ | तब जादू का काढ़ा पीकर | ||
+ | लौटे सूरज का बचपन | ||
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+ | फूल हँसी के | ||
+ | देर रात तक महका करते | ||
+ | पर छूते ही पहली किरणें | ||
+ | सब हैं झरते | ||
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+ | है अजीब | ||
+ | इस युग का साँचा | ||
+ | पर ढलता जाता तन-मन | ||
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09:55, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
हरसिंगार हुआ जीवन
भागमभाग
सुबह से मचती
रोज़ शहर में
हाट, सड़क
मंदिर, विद्यालय
घर, दफ़्तर में
दिनभर सब की कनपट्टी पर
समय रखे रहता है गन
देर शाम
जब थककर सूरज आया करता
चंदा तारों से घर जगमग
पाया करता
तब जादू का काढ़ा पीकर
लौटे सूरज का बचपन
फूल हँसी के
देर रात तक महका करते
पर छूते ही पहली किरणें
सब हैं झरते
है अजीब
इस युग का साँचा
पर ढलता जाता तन-मन