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"खामखा संबंध मत दो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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कल मुझे जिससे घुटन हो
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आज वह अनुबंध मत दो
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पुत्र, भाई, तात सब
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अधिकार चाहें
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मित्र केवल शब्द ही
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टूट जाऊँ भार से
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वह स्वर्ण का भुजबंध मत दो
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क्यूँ जरूरी है
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करें संवाद पूरा
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हो न पाया जो सहज
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ताउमर टूटे न जो
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वह शाप सी सौगंध मत दो
 
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10:10, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

दिल न दिल से मिल सके तो
 खामखा संबंध मत दो

बंधंनों का बोझ
काफ़ी सह चुकी हूँ
तोड़कर मैं बाँध सारे
बह चुकी हूँ

कल मुझे जिससे घुटन हो
आज वह अनुबंध मत दो

पुत्र, भाई, तात सब
अधिकार चाहें
मित्र केवल शब्द ही
दो-चार चाहें

टूट जाऊँ भार से
वह स्वर्ण का भुजबंध मत दो

क्यूँ जरूरी है
करें संवाद पूरा
हो न पाया जो सहज
छोड़ें अधूरा

ताउमर टूटे न जो
वह शाप सी सौगंध मत दो