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कुछ दोहे / हस्तीमल 'हस्ती'

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तन बुनता है चादारिया, मन बुनता है पीर
एक जुलाहे सी मिली, शायर को तक़दीर
 
6.
बेशक़ मुझको तौल तू, कहाँ मुझे इनक़ार
पहले अपने बाट तो, जाँच-परख ले यार
 
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