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"ग़ज़ल / उमेश बहादुरपुरी" के अवतरणों में अंतर

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दिल, दिलबर, दिलदार के अंदाज नया हे।
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दुश्मन के हीं हम अप्पन दिलदार बनयबइ।
अबकी बसंती-बयार के मिजाज नया हे।।
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आब मिलके हमसब नउका बिहार बनयबइ।।
फूल खिलल रंग घुलल, हे दिल से दिल मिलल।
+
दे रहलइ हें सूरज हमर घर पर दस्तक।
सुर सरगम संगीत आउर साज नया हे।। अबकी ....
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हम अप्पन किस्मत के चमकदार बनयबइ।।
दिलबर के दीदार ले तरस रहल अँखिया।
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आबऽ ....
मिठगर बोल कोयलिया के अबाज नया हे।। अबकी ....
+
पुरुष हिअइ हमरा में पौरुष छलकऽ हे।
शम्स के नूर पड़ऽ हे भोर में जब शबनम पर।
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हम तो ई जुआनी के दमदार बनयबइ।।
मोती जइसन चमके के ई राज नया हे।। अबकी ....
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आबऽ ....
दिलबर से नजर मिलते बदल गेल संसार।
+
भाँति-भाँति के फूल खिलल हे ई बगिया में।
की ई बसंत में मिलन के रिवाज नया हे।। अबकी ....
+
सब फूलन के एगो हम तो हार बनयबइ।।
बिन पीयले इहाँ पर सबके सब डोल रहल।
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आबऽ ....
साकी हे नया या साकी के नाज नया हे।। अबकी ....
+
छुआछूत के फेर में हम बड़ दिन रहलूँ।
शरबती अँखियन में जे गोता मार लेलक।
+
मानवता के हम अप्पन सिंगार बनयबइ।।
बस इनखे से मोहब्बत के ताज नया हे।। अबकी ....
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आबऽ ....
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सूक्खल नदी में नाव भी हम चला सकऽ ही।
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हम तो अप्पन जिनगी के रसदार बनयबइ।।
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आबऽ ....
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मेहनतकश इंसाँ इहाँ कहिओ न´् हारऽ हे।
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धरम-करम के हम तो अप्पन यार बनयबइ।।
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आबऽ ....
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हम इतिहाँस पढ़ऽ ही न´् इतिहाँस बनाबऽ ही।
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हम अप्पन सूबा के सदाबहार बनयबइ।।
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आबऽ ....
  
 
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01:33, 11 मार्च 2019 का अवतरण

दुश्मन के हीं हम अप्पन दिलदार बनयबइ।
आब मिलके हमसब नउका बिहार बनयबइ।।
दे रहलइ हें सूरज हमर घर पर दस्तक।
हम अप्पन किस्मत के चमकदार बनयबइ।।
आबऽ ....
पुरुष हिअइ हमरा में पौरुष छलकऽ हे।
हम तो ई जुआनी के दमदार बनयबइ।।
आबऽ ....
भाँति-भाँति के फूल खिलल हे ई बगिया में।
सब फूलन के एगो हम तो हार बनयबइ।।
आबऽ ....
छुआछूत के फेर में हम बड़ दिन रहलूँ।
मानवता के हम अप्पन सिंगार बनयबइ।।
आबऽ ....
सूक्खल नदी में नाव भी हम चला सकऽ ही।
हम तो अप्पन जिनगी के रसदार बनयबइ।।
आबऽ ....
मेहनतकश इंसाँ इहाँ कहिओ न´् हारऽ हे।
धरम-करम के हम तो अप्पन यार बनयबइ।।
आबऽ ....
हम इतिहाँस पढ़ऽ ही न´् इतिहाँस बनाबऽ ही।
हम अप्पन सूबा के सदाबहार बनयबइ।।
आबऽ ....