गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
मानुस हौं तो वही / रसखान
17 bytes added
,
05:22, 12 मार्च 2019
}}
<poem>
{{KKCatSavaiya}}
मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
Sharda suman
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader,
प्रबंधक
35,131
edits