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ग़ज़ल / उमेश बहादुरपुरी

1 byte removed, 09:34, 13 मार्च 2019
रुक सकऽ हऽ कभिओ नञ् तूँ मंजिल के पहिले
जेकर जवाब मिल सकऽ हे ऊ लाजबाब नञ् हे
पियेवाला ....
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