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ग़ज़ल / उमेश बहादुरपुरी

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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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नहइर में सब झूठा हमर पिया।दिल के दरद के दवा तो इहाँ शराब नञ् हेहमरा पियेवाला के लगे नीक तो खराब नञ् हेकेकरो ले तूँ अनूठा हमर पिया।।ई दुनियाँ नञ् छोड़े के चाहीबाप-महतारी गोइठा ठोकबाबे।बाँधल ही हम जीये ले खूँटा हमर पिया।। नइहर दुनियाँ में सिरिफ शबाब नञ् हेपियेवाला ...अउ भी तो ढेर रिश्ता हे जीये के खातिरहरेक बात में देबे के इहाँ जबाव नञ् हेपियेवाला ....बाप-महतारी भैंसी चरवाबे।ढेर फूल हे चमन में खिलल खिलल इहाँजिनगी बदल सुगंध के खातिर सिरिफ गुलाब नञ् हे ठूँठा हमर पिया।। नइहर पियेवाला ....हमरा ले त तूँहीं सुंदर सजनमा।हर हाल में इहाँ तोरा जीये पड़तो जिनगीमूड़ी नवा के जीयेवाला आफताब नञ् हेबाकी काला-कलूटा हमर पिया।। नइहर पियेवाला ....गउना करा हे बेकार के तूँ हमरा ले जा।ई जिनगी रफ्तार के बिनाहो सके जे नञ् पूरा ऊ कोय ख्वाब नञ् हेहम उठइबो तोर जूठा हमर पिया।। नइहर पियेवाला ....हमरा रुक सकऽ हऽ कभिओ नञ् तूँ अकवारी में भर लऽ।मंजिल के पहिलेहमरा से न´् रूठऽ हमार पिया।। नइहर .जेकर जवाब मिल सकऽ हे ऊ लाजबाब नञ् हेपियेवाला ....
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