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"रोती सजनी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | कल्याण सदा करूँ | ||
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+ | जब भरा ज़हर | ||
+ | पी न सकोगे । | ||
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+ | विक्षिप्त है वो | ||
+ | जनहित जो करे | ||
+ | दु:ख ही भरे । | ||
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+ | तुतली बोली- | ||
+ | दिल एक बनाओ | ||
+ | साथ ले जाओ। | ||
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+ | '''रोती सजनी''' | ||
+ | ग़ुमसुम रजनी | ||
+ | ढूँढके हारी। | ||
+ | 92 | ||
+ | निशि-वासर | ||
+ | आशीष बाँटे लाखों | ||
+ | शापित हुए । | ||
+ | 93 | ||
+ | द्वेष की आग | ||
+ | जीभरके जलाए | ||
+ | कोई न बचे । | ||
+ | 94 | ||
+ | जीवन भर | ||
+ | जिनके लिए जागे | ||
+ | वे थे अभागे । | ||
+ | 95 | ||
+ | विवेक-शून्य | ||
+ | निपट अन्धे लोग | ||
+ | सूर्य को कोसें। | ||
+ | 96 | ||
+ | सारे सम्बन्ध | ||
+ | सिर्फ़ कर्मों का भोग | ||
+ | भोगना पड़े । | ||
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02:16, 18 मार्च 2019 का अवतरण
85
उड़ा है पाखी
सप्त सिन्धु के पार
लौटे न लौटे
86
घायल डैने
अश्रू नयन-कोर
कोई न देखे ।
87
सपने देखे-
कल्याण सदा करूँ
सहे प्रहार ।
88
पोर-पोर में
जब भरा ज़हर
पी न सकोगे ।
89
विक्षिप्त है वो
जनहित जो करे
दु:ख ही भरे ।
90
तुतली बोली-
दिल एक बनाओ
साथ ले जाओ।
91
रोती सजनी
ग़ुमसुम रजनी
ढूँढके हारी।
92
निशि-वासर
आशीष बाँटे लाखों
शापित हुए ।
93
द्वेष की आग
जीभरके जलाए
कोई न बचे ।
94
जीवन भर
जिनके लिए जागे
वे थे अभागे ।
95
विवेक-शून्य
निपट अन्धे लोग
सूर्य को कोसें।
96
सारे सम्बन्ध
सिर्फ़ कर्मों का भोग
भोगना पड़े ।