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"गीत और दलित / बाल गंगाधर 'बागी'" के अवतरणों में अंतर

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15:43, 23 अप्रैल 2019 के समय का अवतरण

दलित बस्ती से जब नग्मा कोई गंजरता है
गजल का तेवर ना उम्मीदी में बदलता है
गरीब दर पे खुशी बे चिराग लगती है
जब खुदी1 का नामोंनिशान मिटता है
आता है दलितों का जीना खुशी-खुशी
पर जाति के कब्र में दम बेहद घुटता है
गम से खुशी का नाम मिटता नहीं कभी
पर हंसी बहारों से हर गम नहीं मिटता है