भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मंजिल पर आकर लौट गए / मृदुला झा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) छो (Rahul Shivay ने मंजिल पर आकर लौट गएए / मृदुला झा पृष्ठ मंजिल पर आकर लौट गए / मृदुला झा पर स्थानांतरित कि...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:25, 4 मई 2019 के समय का अवतरण
वे कसमें खाकर लौट गए।
आये तो थे वो चाह लिए,
पर इश्क़ भुलाकर लौट गए।
कुछ बात छिड़ी लेकिन मेरा,
बोझिल मन पाकर लौट गए।
वादा तो था संग चलने का,
क्यों हाथ छुड़ा कर लौट गए।
हम खाने को आये थे क्या,
पर धोखा खाकर लौट गए।
जाने मुझसे क्या भूल हुई,
वे हाथ मिला कर लौट गए।
सब कसमें वादे झूठे थे,
इक बाग दिखाकर लौट गये।