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"कटे न पाश / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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मुस्कानें मरी | मुस्कानें मरी | ||
हँसी गले में फँसी | हँसी गले में फँसी | ||
बधिक -पाश | बधिक -पाश | ||
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'''कटे न पाश''' | '''कटे न पाश''' | ||
खुशियाँ हुई कैद | खुशियाँ हुई कैद | ||
पंख भी कटे। | पंख भी कटे। | ||
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प्राण हुए हैं | प्राण हुए हैं | ||
अब बोझ -से भारी | अब बोझ -से भारी | ||
चले भी आओ। | चले भी आओ। | ||
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कैसा मौसम! | कैसा मौसम! | ||
झुलसी हैं ऋचाएँ | झुलसी हैं ऋचाएँ | ||
असुर हँसें। | असुर हँसें। | ||
− | + | 48 | |
उर -पाँखुरी | उर -पाँखुरी | ||
झेले पाषाण -वर्षा | झेले पाषाण -वर्षा | ||
अस्तित्व मिटे। | अस्तित्व मिटे। | ||
− | + | 49 | |
ईर्ष्या सर्पिणी | ईर्ष्या सर्पिणी | ||
फुत्कारे अहर्निश | फुत्कारे अहर्निश | ||
झुलसे मन। | झुलसे मन। | ||
− | + | 50 | |
कहाँ से लाएँ | कहाँ से लाएँ | ||
चन्दनवन -मन ! | चन्दनवन -मन ! | ||
लपटें घेरे। | लपटें घेरे। | ||
− | + | 51 | |
अश्रु से सींचे | अश्रु से सींचे | ||
महाकाव्य के पन्ने | महाकाव्य के पन्ने | ||
रच दी नारी । | रच दी नारी । | ||
− | + | 52 | |
− | मन | + | मन बाँचा |
अन्धे असुर बने | अन्धे असुर बने | ||
रक्त -पिपासु । | रक्त -पिपासु । | ||
− | + | 53 | |
दर्द जो पीते | दर्द जो पीते | ||
व्यथित के मन का | व्यथित के मन का |
23:07, 5 मई 2019 के समय का अवतरण
44
मुस्कानें मरी
हँसी गले में फँसी
बधिक -पाश
45
कटे न पाश
खुशियाँ हुई कैद
पंख भी कटे।
46
प्राण हुए हैं
अब बोझ -से भारी
चले भी आओ।
47
कैसा मौसम!
झुलसी हैं ऋचाएँ
असुर हँसें।
48
उर -पाँखुरी
झेले पाषाण -वर्षा
अस्तित्व मिटे।
49
ईर्ष्या सर्पिणी
फुत्कारे अहर्निश
झुलसे मन।
50
कहाँ से लाएँ
चन्दनवन -मन !
लपटें घेरे।
51
अश्रु से सींचे
महाकाव्य के पन्ने
रच दी नारी ।
52
मन बाँचा
अन्धे असुर बने
रक्त -पिपासु ।
53
दर्द जो पीते
व्यथित के मन का
सुधा न माँगे।