"बहिनें आँखें / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | प्रेम भरेंगे । | ||
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+ | तुम हो चन्दा | ||
+ | मधुर चाँदनी हो | ||
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+ | तपती धरा | ||
+ | दहकता गगन | ||
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+ | पुरवा हवा | ||
+ | बन शीतल किया | ||
+ | मेरा जीवन। | ||
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+ | देगे प्रभु जो | ||
+ | वरदान हमको | ||
+ | माँगेंगे तुम्हें । | ||
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+ | घिरा था तम | ||
+ | यहाँ से वहाँ तक | ||
+ | भटके हम । | ||
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+ | तुम आ गए | ||
+ | राह में दीया बन, | ||
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+ | बहिने आँखें | ||
+ | कब भारी लगती | ||
+ | पाखी को पाँखें । | ||
+ | 173 | ||
+ | समान मन | ||
+ | झेलेंगे सब गम | ||
+ | हम ना कम। | ||
+ | 174 | ||
+ | आँख जो खुली | ||
+ | विहँसी आँगन में | ||
+ | धुली चाँदनी । | ||
+ | 175 | ||
+ | नैन -कोर से | ||
+ | जब मुझे निहारा | ||
+ | फैला उजास | ||
+ | 176 | ||
+ | किलोंले करे | ||
+ | दीप -शिखा आँगन | ||
+ | उजाला भरे । | ||
+ | 177 | ||
+ | नदिया भरे | ||
+ | धरा से नभ तक | ||
+ | उजाला बहे । | ||
+ | 178 | ||
+ | अजाना पथ | ||
+ | बढ़े चलो दीप ले | ||
+ | अपना रथ । | ||
+ | 179 | ||
+ | हर दौर में | ||
+ | तुम्हारी मुश्किल में | ||
+ | रहें दिल में | ||
+ | 180 | ||
+ | सदा पहने | ||
+ | उदासी के गहने | ||
+ | उतारो इन्हें | ||
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04:34, 19 मई 2019 के समय का अवतरण
161
बोझिल मन
खोजते तुमको ये
धरा -गगन
162
कली ये खिली
हल्की प्रेम-फुहार
जब थी मिली ।
163
धड़कन हो
मन की शीतलता ,
व चन्दन हो ।
164
अँधेरी खाई
पार हम करेंगे
प्रेम भरेंगे ।
165
तुम हो चन्दा
मधुर चाँदनी हो
मेरी रागिनी हो ।
166
रिश्तों से परे
सोता प्रेम-मधु का
सदा ही झरे ।
167
तपती धरा
दहकता गगन
आकुल मन
168
पुरवा हवा
बन शीतल किया
मेरा जीवन।
169
देगे प्रभु जो
वरदान हमको
माँगेंगे तुम्हें ।
17 0
घिरा था तम
यहाँ से वहाँ तक
भटके हम ।
171
तुम आ गए
राह में दीया बन,
हमें भा गए ।
172
बहिने आँखें
कब भारी लगती
पाखी को पाँखें ।
173
समान मन
झेलेंगे सब गम
हम ना कम।
174
आँख जो खुली
विहँसी आँगन में
धुली चाँदनी ।
175
नैन -कोर से
जब मुझे निहारा
फैला उजास
176
किलोंले करे
दीप -शिखा आँगन
उजाला भरे ।
177
नदिया भरे
धरा से नभ तक
उजाला बहे ।
178
अजाना पथ
बढ़े चलो दीप ले
अपना रथ ।
179
हर दौर में
तुम्हारी मुश्किल में
रहें दिल में
180
सदा पहने
उदासी के गहने
उतारो इन्हें