Changes

<Poem>
गर्मियों से मुग्ध थी धरती
पर बारिश की बूँदें बून्दें पड़ते हीतुम बुदबुदाईं"बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !"
क्या तुम्हारा मन
मिट्टी से भी ज़्यादा ठंड ठण्ड को महसूस करता है
तभी तो बारिश में विलीन हो गए
छलकते हुए आनंद आनन्द को स्वीकार न करतुमने आहिस्ता से कहा"बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !"
तुम्हारे आँगन में
बूँदबून्द-बूँद बून्द मेंअपने अनगिनत चाँदी चान्दी के तारों मेंसंगीत सँगीत की सृष्टि कर
बारिश
जिप्सी लडकी लड़की की तरह नाचती है
तुम्हारी आँखों में ख़ुशी है, आह्लाद है
और शब्दों में बच्चों-सी पवित्रता
"बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !"
अपने इर्द-गिर्द की चीज़ों
से अनजान
तुम यहाँ बैठी हो
नदी तुम्हारी स्मृतियों में ज़िंदा ज़िन्दा है
अपनी सहेलियों के संगसँग
धीरे से घाघरा उठाकर
तुम नदी पार करती होंहोअचानक बारिश गिरती हैंहैलहरें चाँदी चान्दी के नुपूर पहन नाचती हैं
बारिश में भीगकर हर्षोन्माद में
हँसते हंसते हुए तुम
नदी तट पर पहुँचती हो
बारिश में भीगे आँवले के फूल
पगडंडी पगडण्डी पर तुम्हारा स्वागत करते हैं
तुम्हारे सामने
केवल बारिश है, पगडंडी पगडण्डी है
और फूलों से भरे खेत हैं !
मेरी उपस्थिति को भूलते हुए
तुमने मृदुल आवाज़ में कहा"बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !"
फिर तुम्हें देखकर
मैंने उससे भी मृदुल आवाज़ में कहा"तुम भी तो कितनी ख़ूबसूरत हो ! "
'''मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,751
edits

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!