भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वो खफ़ा हमसे नज़र आने लगे है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास' |अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:19, 22 मई 2019 के समय का अवतरण

वो खफ़ा हमसे नज़र आने लगे है
इसलिए हिजरत के जुर्माने लगे है।

मिल रही हैं बाग़ वाले को दुआएं
क़ाफ़िले कुछ देर सुस्ताने लगे है।

गांव की चौकी बनी थाना ये सुन कर
गांव के सब लोग घबराने लगे हैं।

अब सलीक़े से उठाते जाम हैं वो
बज़्म के आदाब कुछ आने लगे हैं।

आज फिर उट्ठा ज़माने से भरोसा
दिन भरोसे के मियां जाने लगे हैं।

क्या ज़माना है कि पैदाइश के दिन से
आज के बच्चे दवा खाने लगे हैं।

चोट अय विश्वास क्यों पहुंचे न दिल तक
वो गले लगने से कतराने लगे हैं।