भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़बर बिजली गिराने की घटा छाई अगर देती / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास' |अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:26, 22 मई 2019 के समय का अवतरण

ख़बर बिजली गिराने की घटा छाई अगर देती
बचा लेते चमन हम साथ पुरवाई अगर देती।

बिखरते टूट कर ऐसे नहीं परिवार बस्ती के
उचित सम्मान नारी को ये अंगनाई अगर देती।

हमें उनसे महब्बत है न खुलता राज़ महफ़िल में
हमारे आंसुओं को रोक शहनाई अगर देती।

मुक़म्मल कैनवस पर आपकी तस्वीर कर लेता
ज़रा सा दर्द दिल में और तन्हाई अगर देती।

ढहा देते किसी भी तौर से, ले मोल हर जोखिम
दिलों के दरमियाँ दीवार दिखलाई अगर देती।

कशिश पर हुस्न की बंदा सरापा लुट गया होता
इशारा आंख की 'विश्वास' गहराई अगर देती।