भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कौन सा जादू चला हैरत में हर अय्यार था / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास' |अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:38, 22 मई 2019 के समय का अवतरण
कौन सा जादू चला हैरत में हर अय्यार था
जीत उसकी हो गई जो हार कर हक़दार था।
आज वो हमसे मिला अफ़सोस ग़ैरों की तरह
जो हमारे ज़ख़्म पर मरहम का दावेदार था।
वो शजर, रखते थे जो मुठ्ठी में अपनी आंधियां
उड़ गये तूफ़ान इतना तेज़ पुर-रफ्तार था।
कह उठे दीवारो-दर वो क्यों न आया आज तक
जिसकी ख़ातिर मुद्दतों से मुंतज़िर दरबार था
छोड़ देना चाहता था जज मुकदमा देख कर
हो बरी मुल्जिम न इस ख़्वाहिश में पैरोकार था।
ताज पूंजीवाद के सिर चाहता कोई न, बस
एक हातिमताई सच्चा मुल्क को दरकार था।
मेरे जाने से ये चोरी बन्द हो, तो मैं चलूं
रख नया लो कह रहा कल रात चौकीदार था।