भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खून से तर शरीर ज़िंदा है / कुमार नयन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार नयन |अनुवादक= |संग्रह=दयारे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:52, 3 जून 2019 के समय का अवतरण
खून से तर शरीर ज़िंदा है
मेरा ज़ख़्मी ज़मीर ज़िंदा है।
वहां पांखड चल नहीं सकता
जहां कोई कबीर ज़िंदा है।
है हुक़ूमत तो मुफ़लिसी की मगर
मुल्क का हर अमीर ज़िंदा है।
इक पियादा हो जब तलक ज़िंदा
तो समझना वज़ीर ज़िंदा है।
कोई इससे बड़ी तो खींचे अब
मेरी छोटी लकीर ज़िंदा है।
तेरी दुनिया में मर गयी होगी
मेरी दुनिया में हीर ज़िंदा है।
पूछियो मत फ़िराक़ ग़ालिब से
मेरी ग़ज़लों में मीर ज़िंदा है।