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|संग्रह=ठण्डा लोहा / धर्मवीर भारती
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ठंडा लोहा! ठंडा लोहा! ठंडा लोहा!
मेरी दुखती हुई रगों पर ठंडा लोहा!
मेरी स्वप्न भरी पलकों पर
मेरे गीत भरे होठों पर
मेरी दर्द भरी आत्मा पर
&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp; स्वप्न नहीं अब
&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp; गीत नहीं अब
&nbsp;&nbsp;&nbsp; &nbsp; दर्द नहीं अब
एक पर्त ठंडे लोहे की
मैं जम कर लोहा बन जाऊँ -
हार मान लूँ -
यही शर्त ठंडे लोहे की
ठंडा लोहा ओ मेरी आत्मा की संगिनी! तुम्हें समर्पित मेरी सांस सांस थी, लेकिन मेरी सासों में यम के तीखे नेजे सा कौन अड़ा है? &nbsp;&nbsp; &nbsp; ठंडा लोहा ! ठंडा लोहा !<br>मेरी दुखती हुई रगों पर मेरे और तुम्हारे भोले निश्चल विश्वासों को कुचलने कौन खड़ा है ?&nbsp;&nbsp; &nbsp; ठंडा लोहा !
मेरी स्वप्न भरी पलकों पर<br>मेरे गीत भरे होठों पर<br>मेरी दर्द भरी आत्मा पर<br>&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp; स्वप्न नहीं अब<br>&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp; गीत नहीं अब<br>&nbsp;&nbsp;&nbsp; &nbsp; दर्द नहीं अब<br>एक पर्त ठंडे लोहे की<br>मैं जम कर लोहा बन जाऊँ - <br>हार मान लूँ - <br>यही शर्त ठंडे लोहे की <br>  ओ मेरी आत्मा की संगिनी ! <br>तुम्हें समर्पित मेरी सांस सांस थी, लेकिन <br>मेरी सासों में यम के तीखे नेजे सा <br>कौन अड़ा है ? <br>&nbsp;&nbsp; &nbsp; ठंडा लोहा ! <br>मेरे और तुम्हारे भोले निश्चल विश्वासों को <br>कुचलने कौन खड़ा है ?<br>&nbsp;&nbsp; &nbsp; ठंडा लोहा ! <br>    ओ मेरी आत्मा की संगिनी ! <br>अगर जिंदगी की कारा में <br>कभी छटपटाकर मुझको आवाज़ लगाओ <br>और न कोई उत्तर पाओ <br>यही समझना कोई इसको धीरे धीरे निगल चुका है <br>इस बस्ती में दीप जलाने वाला नहीं बचा है <br>&nbsp; &nbsp; सूरज और सितारे ठंढे <br>&nbsp;&nbsp;&nbsp; राहे सूनी <br>&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp; विवश हवाएं <br>&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;&nbsp; शीश झुकाए खड़ी मौन हैं <br>&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;&nbsp; &nbsp; बचा कौन है ? <br>&nbsp; ठंडा लोहा ! ठंडा लोहा ! ठंडा लोहा !<br/poem>[https://youtu.be/MKXZKpDWwG4 यू ट्यूब पर सुने]
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