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+ | देखो मद से भरे | ||
+ | मैं रातभर जगी' | ||
+ | ऊषा यूँ बोली- | ||
+ | धो उदासी मन की | ||
+ | हँसो चूम लो मुझे। | ||
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+ | बिछुड़े साथी, | ||
+ | जिनकी राहें मुड़ी | ||
+ | जहाँ खिली चाँदनी; | ||
+ | साथ वे बचे | ||
+ | ग्रंथि-बन्धन किया | ||
+ | मन से मन सदा। | ||
+ | 9 | ||
+ | सूखी घास ही | ||
+ | जले पलभर में | ||
+ | ईर्ष्यालु जन -जैसी | ||
+ | बचे रहेंगे | ||
+ | हम ठहरे लौह | ||
+ | पिंघलेंगे,जलें ना। | ||
+ | 10 | ||
+ | तय किया था | ||
+ | हमने मिलकर | ||
+ | फूलों- सा खिलकर, | ||
+ | जुदा न होंगे | ||
+ | भूल गए हो तुम | ||
+ | राह देखते हम। | ||
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21:46, 11 जून 2019 का अवतरण
अतीत बीता
क्यों रोया जाए सदा
चलो आज तो जी लें
फटा जो दिल
उसको आज सी लें
तुझे देख मुस्काएँ।
7
'मेरे अधर
देखो मद से भरे
मैं रातभर जगी'
ऊषा यूँ बोली-
धो उदासी मन की
हँसो चूम लो मुझे।
8
बिछुड़े साथी,
जिनकी राहें मुड़ी
जहाँ खिली चाँदनी;
साथ वे बचे
ग्रंथि-बन्धन किया
मन से मन सदा।
9
सूखी घास ही
जले पलभर में
ईर्ष्यालु जन -जैसी
बचे रहेंगे
हम ठहरे लौह
पिंघलेंगे,जलें ना।
10
तय किया था
हमने मिलकर
फूलों- सा खिलकर,
जुदा न होंगे
भूल गए हो तुम
राह देखते हम।
-0-