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"मिटकर आओ / सुभाष राय" के अवतरणों में अंतर

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नहीं, तुम प्रवेश नहीं कर सकते यहाँ
 
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दरवाजे बन्द हैं तुम्हारे लिए
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दरवाज़े बन्द हैं तुम्हारे लिए
 
यह खाला का घर नहीं कि जब चाहा चले आए
 
यह खाला का घर नहीं कि जब चाहा चले आए
  

21:48, 26 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

नहीं, तुम प्रवेश नहीं कर सकते यहाँ
दरवाज़े बन्द हैं तुम्हारे लिए
यह खाला का घर नहीं कि जब चाहा चले आए

पहले साबित करो ख़ुद को
जाओ चढ़ जाओ सामने खड़ी चोटी पर
कहीं रुकना नहीं, किसी से रास्ता मत पूछना
पानी पीने के लिए जलाशय पर ठहरना नहीं

सावधान रहना आगे बढ़ते हुए
भूख से आकुल न होना
फलों से लदे पेड़ देख रुकना नही
शिखर के पास पहुँचकर भी फिसल सकते हो

चोटी पर पहुँच जाओ तो नीचे हज़ार फ़ुट गहरी
खाई में छलाँग लगा देना और आ जाना
दरवाज़ा खुला मिलेगा

या फिर अपनी आँखें चढ़ा दो मेरे चरणों में
तुम्हारे अन्तरचक्षु खोल दूँगा मैं
अपनी जिह्वा कतर दो
अजस्र स्वाद के स्रोत से जोड़ दूँगा तुझे
कर्णद्वय अलग कर दो शरीर से
तुम्हारे भीतर बाँसुरी बज उठेगी
खींच लो अपनी खाल
भर दूँगा तुम्हें आनन्द के स्पन्दनस्पर्श से

परन्तु अन्दर नहीं आ सकोगे इतने भर से
जाओ, वेदी पर रखी तलवार उठा लो
अपना सर काटकर ले आओ
अपनी हथेली पर सम्हाले
दरवाजा खुला मिलेगा

इतनी जगह नहीं कि दो समा जाएँ
आना ही है तो मिटकर आओ
दरवाज़ा खुला मिलेगा