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"जब यादों के अक्स उभरने लगते हैं / अमन चाँदपुरी" के अवतरणों में अंतर

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00:31, 27 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

जब यादों के अक्स उभरने लगते हैं
हम किस्तों में जीने मरने लगते हैं

मीरा की नज़रों से गर देखा जाये
प्याले में भी अक्स उभरने लगते हैं

हमको जब भी याद तुम्हारी आती है
आईने से बातें करने लगते हैं

जादू करती है जब दुआ बुज़ुर्गों की
हर मुश्किल से आप उबरने लगते हैं

दर्द-ओ-ग़म की भट्टी में तप-तप कर हम
कुंदन बनकर रोज़ निखरने लगते हैं

दिन भर आती रहती है बस उसकी याद
रात आँखों में ख़्वाब ठहरने लगते हैं

पहले चढ़ता है इक चेहरा आँखों में
फिर काग़ज़ पर शेर उतरने लगते हैं

धीरे-धीरे मंजिल आती है नज़दीक
'अमन' क़दम जब आगे धरने लगते हैं