भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उर–कम्पन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
भाव-डोर से
 
भाव-डोर से
 
छाया-सी बँधी तुम
 
छाया-सी बँधी तुम
जीवन–अमरा॥
+
जीवन–अमर ।
 
29
 
29
 
बोल तुम्हारे
 
बोल तुम्हारे

06:34, 7 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण

26
ज्ञान-उजेरा
ढक लिया हाथों से
हे क्षुद्र साहित्यकार?
'मैं-मै' का चढ़ा
जीवन में बुखार
इसे अब उतार।
27
उर–कम्पन
निर्मल ज्यों दर्पन
भावों–भरी मिठास,
सुख-दु: ख-से
सदा साथ रहेंगे
बनके परछाई।
28
मन-सौरभ
करता सुरभित
प्राणों की अँगड़ाई,
भाव-डोर से
छाया-सी बँधी तुम
जीवन–अमर ।
29
बोल तुम्हारे
बने शीतल छाया
छतनार नीम की,
जीवन खिला
शब्दों का मधुरिम
स्पर्श मिला मन को।
30
छलती छाया
सगे-सम्बन्धी-जैसे
जब दुर्दिन आते,
मिलता कोई
हमको मीत साँचा
जो मन को भी बाँचे