"आँख जब लगी थी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 42: | पंक्ति 42: | ||
बीच राह में छोड़ा | बीच राह में छोड़ा | ||
हर विश्वास तोड़ा । | हर विश्वास तोड़ा । | ||
+ | 25 | ||
+ | हे प्रभु मेरे | ||
+ | कुछ ऐसा कर दे ! | ||
+ | दु:ख मीत के | ||
+ | सब चुनकर तू | ||
+ | मेरी झोली भरदे ! | ||
+ | 26 | ||
+ | व्यथा की साँसें | ||
+ | कर देना शीतल | ||
+ | नयन खिलें | ||
+ | सब ताप मिटाके | ||
+ | करना आलिंगन । | ||
+ | 27 | ||
+ | नई भोर-सा | ||
+ | तन हो सुरभित | ||
+ | पोर-पोर में | ||
+ | भरें गीतों के स्वर | ||
+ | खिलें प्रेम-अधर । | ||
-0- | -0- | ||
'''(8 दिसम्बर-12-28 मई-13)''' | '''(8 दिसम्बर-12-28 मई-13)''' | ||
</poem> | </poem> |
08:10, 7 सितम्बर 2019 का अवतरण
19
मिले दो पल
आँख जब लगी थी
हुए ओझल
जब जगे तो देखा-
मिटी जीवन रेखा ।
20
द्वन्द्व घिरा था
जीवन का जंगल
मन विकल
तुमने मिल बाँटे
दु:ख के सब पल ।
21
कहाँ मिलेगा
यह अपनापन,
तुमने दिया,
जो जाने -अनजाने
खुशबू-भरा मन ।
22
नि:स्पृह मन
जब भी कुछ चाहे
ठोकर खाए
पूछे न यहाँ कोई
अपने या पराए ।
23
दूर है चन्दा
ढूँढ़ता है नभ में
अकेला तारा
कभी नज़र आए
तो कभी तरसाए ।
24
भरोसा किया
थे साथी सफ़र के
रहे डरके
बीच राह में छोड़ा
हर विश्वास तोड़ा ।
25
हे प्रभु मेरे
कुछ ऐसा कर दे !
दु:ख मीत के
सब चुनकर तू
मेरी झोली भरदे !
26
व्यथा की साँसें
कर देना शीतल
नयन खिलें
सब ताप मिटाके
करना आलिंगन ।
27
नई भोर-सा
तन हो सुरभित
पोर-पोर में
भरें गीतों के स्वर
खिलें प्रेम-अधर ।
-0-
(8 दिसम्बर-12-28 मई-13)