"ममता -रस / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | मधुर सामगान | ||
+ | नया विहान। | ||
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+ | तुम्हारा प्यार- | ||
+ | कल-कल करती | ||
+ | ज्यों जलधार। | ||
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+ | तुम्हारा माथ- | ||
+ | छू लिया जो दो पल | ||
+ | लौटें हैं प्राण। | ||
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+ | तुम्हारा मन- | ||
+ | कण-कण महका | ||
+ | चन्दन-वन । | ||
+ | 83 | ||
+ | तुम्हारा हास- | ||
+ | धरा से नभ तक | ||
+ | फैला उजास । | ||
+ | 84 | ||
+ | तुम्हारे भाव- | ||
+ | अमृत -सरिता में | ||
+ | तिरती नाव । | ||
+ | 85 | ||
+ | तेरा सम्बन्ध- | ||
+ | पावन अनुबन्ध | ||
+ | न टूटे कभी । | ||
+ | 86 | ||
+ | ममता -रस | ||
+ | बढ़ता सागर-सा | ||
+ | तुम्हें जो सोचूँ । | ||
+ | 87 | ||
+ | नाम लिखूँगा | ||
+ | अम्बर के माथे पे | ||
+ | ये वादा रहा । | ||
+ | 88 | ||
+ | मिटना है क्या? | ||
+ | सिर्फ़ नई सर्जना | ||
+ | फ़सलें उगीं। | ||
+ | 89 | ||
+ | शोला हूँ मैं | ||
+ | जलूँ ,उजाला करूँ | ||
+ | हिम्मत भरूँ । | ||
+ | 90 | ||
+ | चिंगारी हैं वे, | ||
+ | घर जलाते रहे | ||
+ | खुद भी जले । | ||
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07:48, 8 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण
76
ममता जगे
बढ़ता सागर-सा
तुम्हें जो सोचूँ ।
77
तुम्हारी याद-
रोम-रोम में गूँजे
बनके नाद ।
78
तुम्हारा रूप-
ओस-बूँद पावन
सर्दी की धूप ।
79
तुम्हारे बैन-
मधुर सामगान
नया विहान।
80
तुम्हारा प्यार-
कल-कल करती
ज्यों जलधार।
81
तुम्हारा माथ-
छू लिया जो दो पल
लौटें हैं प्राण।
82
तुम्हारा मन-
कण-कण महका
चन्दन-वन ।
83
तुम्हारा हास-
धरा से नभ तक
फैला उजास ।
84
तुम्हारे भाव-
अमृत -सरिता में
तिरती नाव ।
85
तेरा सम्बन्ध-
पावन अनुबन्ध
न टूटे कभी ।
86
ममता -रस
बढ़ता सागर-सा
तुम्हें जो सोचूँ ।
87
नाम लिखूँगा
अम्बर के माथे पे
ये वादा रहा ।
88
मिटना है क्या?
सिर्फ़ नई सर्जना
फ़सलें उगीं।
89
शोला हूँ मैं
जलूँ ,उजाला करूँ
हिम्मत भरूँ ।
90
चिंगारी हैं वे,
घर जलाते रहे
खुद भी जले ।