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{{KKRachna
| रचनाकार= कुमारेंद्र पारसनाथ सिंह |अनुवादक=|संग्रह=}} {{KKCatKavita}}<poem> हरिजन टोली में शाम बिना कहे हो जाती है।है ।
पूरनमासी हो या अमावस
रात के व्यवहार में कोई फ़र्क नहीं पड़ता।पड़ता ।
और जब दिन के साथ चलने के लिए
हाथ-पैर मुश्किल से अभी सीधे भी नहीं हुए रहते,
सुबह हो जाती है ।
सुबह हो जाती है। कहीं रमिया झाड़ू-झंखा झँखा लेकर निकलती है तो कहीं गोबिंदी गाली गोबिन्दी ग़ाली बकती है।है ।
उसे किसी से हँसी-मजाक अच्छा नहीं लगता
और वह महतो की बात पर मिरच की तरह परपरा उठती है।है ।
वैसे, कई और भी जवान चमारिनें हैं,
हलखोरिनें और दुसाधिनें हैं,
पर गोबिंदी गोबिन्दी की बात कुछ और है-—
वह महुवा बीनना ही नहीं,
महुवा का रस लेना भी जानती है ।
महुवा उसका आदमी जूता कम, ज़्यादातर आदमी की जबानसीने लगा है । मुश्किल से इक्कीस साल का रस लेना भी जानती है।होगा,मगर गोबिन्दी के साल भर के बच्चे का बाप है ।क्या नाम है? — टेसू ! हाँ, टेसुआ का बाप
गोबिन्दी टेसुआ और उगना के बीच बँटी है
मगर टेसुआ के क़रीब होकर खड़ी है ।
उस बार टोले के साथ-साथ उसका आदमी जूता कमघर भी जला दिया गया था, ज़्यादातर आदमी की जबानऔर फगुना के बच निकलने परसीने लगा है । मुश्किल से इक्कीस उसका एक साल का होगा,बालू आग में झोंक दिया गया था।
मगर गोबिंदी के साल भर के बच्चे का बाप है।इस बार गोबिन्दी टेसू को लेकर अपने उगना पर फिरण्ट है,पर उगना कुछ नहीं सुनतादीन-दुनिया को ठोकर मार दिन अन्धैत देवी-देवता पर थूकता है,बड़े-बड़ों की मूँछें उखाड़ता-फिरता है —और लोगों को दिखा-दिखाकर आग में मूतता है ।
क्या नाम गोबिन्दी को पक्का है?- :आग एक बार फिर धधकेगी,और उसके टेसू! हाँको कुछ नहीं होगा —सारी हरिजन टोली उसकी बाँह पकड़ खड़ी होगी, टेसुआ का बापऔर उस आग से लड़ेगी ।</poem>