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दो कलि सामान कोमल अधरों पर | दो कलि सामान कोमल अधरों पर |
08:45, 20 अगस्त 2008 का अवतरण
दो कलि सामान कोमल अधरों पर
शांत चित्त की सहज कोर धर
अलि की सरस सुरभि को भी हर
प्रथम उषा की लाली भर कर
स्निग्ध सरस सम बहता सीकर
चिर आशा का अमृत पीकर
साँसों की एक मंद लहर से
कलि द्वय का स्पंदित हो जाना
तभी उन्हीं के मध्य उभरते
मुक्तक पंक्ति का खिल जाना
जीने से कहीं सुखकर लगता है
ऐसे मुस्काने पर,
सर्वस्व त्यागकर मिट जाना !