भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शराबी / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= बदलता युग / महेन्द्र भटनागर }} <...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 26: | पंक्ति 26: | ||
::ऐसा आदमी केवल | ::ऐसा आदमी केवल | ||
::शराबी है, शराबी है ! | ::शराबी है, शराबी है ! | ||
− | (1 पंजाब सरकार के अनुरोध पर लिखित।) | + | |
+ | (1 पंजाब सरकार के अनुरोध पर लिखित।) |
22:41, 20 अगस्त 2008 के समय का अवतरण
हमेशा देखकर जिसको किया करते मनुज नफ़रत
कि दुनिया में नहीं मिलती कभी जिसको ज़रा इज़्ज़त,
पड़ा मिलता कभी मैली-कुचैली नालियों के पास
कि जिसका ज़िन्दगी का, ठोकरें खाता रहा इतिहास,
ऐसा आदमी केवल
शराबी है, शराबी है !
नहीं रहती जिसे कुछ याद दुनिया की, लँगोटी की,
कि भर दुर्गन्ध जीवन की, सदा हँसता हँसी फीकी,
हमेशा चाटते रहते सड़क पर मुख अनेकों श्वान,
हज़ारों गालियाँ देते, हज़ारों लोग पागल जान
ऐसा आदमी केवल
शराबी है, शराबी है !
शराबी को हमेशा काल पहले मौत आती है,
कि पहले फूल-सी कोमल जवानी बीत जाती है,
हज़ारों व्यक्तियों में एक पैसे का बना मुहताज,
कि जिसकी भूल कर कोई कभी सुनता नहीं आवाज़
ऐसा आदमी केवल
शराबी है, शराबी है !
(1 पंजाब सरकार के अनुरोध पर लिखित।)