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आदमी-औरत / स्वदेश भारती

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<poem>
आदमी ने कहा — आओ चलें, आगे और आगे
औरत ने कहा— कहा — हाँ चलो, पर थोड़ा सुस्ता लें
नदी किनारे, पर्वत की छांव में
सागर-तट पर, वसन्त-कानन में ।
अभिराम स्वप्न जागते हैं
आदमी ने कहा— कहा — आओ चलें, आगे और आगेऔरत ने कहा— कहा — आह ! मर्द क्यों नहीं समझ पाते औरत के
अन्तस में धधकते अँगारे, अन्तर-निहित रहस्य, कामनाएँ
और उनके दायरे ।
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