|रचनाकार=प्रताप नारायण सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=छंद-मुक्तबद्ध/ प्रताप नारायण सिंह
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मिला अखंड वर बना अमर्त्य, मर्त्य लोक में
परास्त सुर हुये, दनुज अजेय था त्रिलोक में
सदन विहीन दीन हीन देवता डरे डरे
निरीह यत्र तत्र क्लांत क्रांत हिय लिए फिरें