भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नया पाठ / कुमार विकल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विकल |संग्रह= एक छोटी-सी लड़ाई / कुमार विकल }} [ देख...)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
  
[ देखो और सीखो पद्धति से ]
+
'''[ देखो और सीखो पद्धति से ]'''
  
  
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
ख खरगोश
 
ख खरगोश
  
ग से गाँधी
+
ग से गांधी
  
  
लेकिन बच्चो कौन-सा गाँधी?
+
लेकिन बच्चो! कौन-सा गांधी?
  
मोहनदास करमचंद गाँधी
+
मोहनदास करमचंद गांधी
  
बापू गाँधी ?
+
बापू गांधी?
  
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी?
+
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी?
  
( बच्चों का समवेत )
+
(बच्चों का समवेत स्वर)
  
 
नहीं जानते हम बापू को
 
नहीं जानते हम बापू को
  
नहीं जानते राष्ट्र्पिता को
+
नहीं जानते राष्ट्रपिता को
  
 
हम तो केवल यही जानते
 
हम तो केवल यही जानते
  
ग से गाँधी
+
ग से गांधी
  
एक नहीं बहुत से गाँधी
+
एक नहीं, बहुत से गांधी
  
  
पंक्ति 40: पंक्ति 40:
 
ख खरगोश
 
ख खरगोश
  
मास्टर जी क्यों उड़ गये होश ?
+
मास्टर जी क्यों उड़ गये होश?
  
  
पंक्ति 47: पंक्ति 47:
 
हमें नहीं बिल्कुल दोहराना
 
हमें नहीं बिल्कुल दोहराना
  
उसमें एक ही गाँधी
+
उसमें एक ही गांधी
  
  
 
इ से इमली  
 
इ से इमली  
  
आ से आँधी
+
आ से आंधी
  
 
स से सोना
 
स से सोना
  
च से चाँदी
+
च से चांदी
  
  
पंक्ति 78: पंक्ति 78:
 
भरे पड़े हैं मिल-गोदाम
 
भरे पड़े हैं मिल-गोदाम
  
जेबों में बस चाहिए दाम.
+
जेबों में, बस, चाहिए दाम।
  
  
पंक्ति 90: पंक्ति 90:
  
  
ग से गाँधी
+
ग से गांधी
  
एक नहीं बहुत से गाँधी
+
एक नहीं बहुत से गांधी
  
इ से गाँधी
+
इ से गांधी
  
स से गाँधी
+
स से गांधी
  
च से चाँदी-सोना गाँधी
+
च से चांदी-सोना गांधी
  
  
 
घ से घर  
 
घ से घर  
  
अब घर छल
+
अब घर चल
  
आने वाली ज़ोर की आँधी.
+
आने वाली ज़ोर की आंधी।

10:13, 26 अगस्त 2008 के समय का अवतरण

[ देखो और सीखो पद्धति से ]


क कबूतर

ख खरगोश

ग से गांधी


लेकिन बच्चो! कौन-सा गांधी?

मोहनदास करमचंद गांधी

बापू गांधी?

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी?

(बच्चों का समवेत स्वर)

नहीं जानते हम बापू को

नहीं जानते राष्ट्रपिता को

हम तो केवल यही जानते

ग से गांधी

एक नहीं, बहुत से गांधी


क कबूतर

ख खरगोश

मास्टर जी क्यों उड़ गये होश?


हुआ आपका पाठ पुराना

हमें नहीं बिल्कुल दोहराना

उसमें एक ही गांधी


इ से इमली

आ से आंधी

स से सोना

च से चांदी


नया पाठ है—

अ से अन्न

अन्न है किसी देश का धन

मेहनत करके अन्न उगा

लेकिन खुद कम से कम खा


क से कपड़ा

कपड़े से ढँकते है तन

जैसा कपड़ा वैसा मन

भरे पड़े हैं मिल-गोदाम

जेबों में, बस, चाहिए दाम।


ख से खोली

वह तो है बम्बइया बोली

सब को खोली ,सबको काम

पढ़ समाजवाद का नाम


ग से गांधी

एक नहीं बहुत से गांधी

इ से गांधी

स से गांधी

च से चांदी-सोना गांधी


घ से घर

अब घर चल

आने वाली ज़ोर की आंधी।