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मास्टर नेकीराम / परिचय

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मास्टर नेकीराम की प्रमुख विशेषता यह थी कि जैसे-जैसे रात बढती थी वैसे-वैसे उनकी आवाज भी बढती चली जाती थी। उनका गायन उनके पिता की तरह कर्णप्रिय,अभिनय व संगीत उच्चकोटि का था। उन्हें एक ऐसे सांगी के रूप में जाना जाता है जिन्होंने अपने मधुर गायन व बिन्दास अभिनय से दर्शकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई। पूरा परिवार एक साथ बैठकर उनका सांग देख सकता था मजाल कहीं अशलीलता आ जाए। यहीं कारण था कि वे अपने जमाने के सांगियों से कहीं आगे थे। उनका सांग मंचन लगातार लगभग आठ घन्टे तक चलता था।
8, 9 जनवरी , 1971 को नांगल चौधरी (हरियाणा) में हरियाणा कला मण्डल द्वारा मास्टर नेकीराम के दो सांगों का आयोजन कराया गया। यहां इनकी उत्तम सांग प्रस्तुति के लिए हरियाणा कला मण्डल के निदेशक देवीशंकर प्रभाकर ने इन्हें प्रशंसा पत्र भेंट करते हुए एक विशिष्ट सांग सम्राट की संज्ञा दी। यहां संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की संगीत, नृत्य एवं नाटक की राष्ट्रीय अकादमी संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली द्वारा उस दौर में हरियाणा के पहले और इकलौते कलाकार के रूप में मास्टर नेकीराम की मधुर आवाज को रिकार्ड किया और उनके द्वारा मंचित सांग फूल सिंह-नौटंकी की भी रिकार्डिंग की गई। इतना ही नहीं अपार जनसमूह के बीच इस सांग मंचन के छायाचित्र भी लिए जो कि आज भी संगीत नाटक अकादमी के दिल्ली स्थित संग्रहालय में हरियाणा की धरोहर के रूप में सुरक्षित है।
मास्टर नेकीराम ने लगभग 30 सांगों का सृजन किया और उनका 60 वर्षों तक मंचन किया। किस्सा राजा भोज-भानवती, हीर-रांझा,लीलो-चमन, राजा रिसालू, राजपूत चापसिंह-सोमवती, फूलसिंह-नौटंकी, रूप-बसन्त, सेठ ताराचन्द, राजा हरिश्चन्द्र-तारावती, शाही लक्कड़हारा, कीचक-वध, मीराबाई, भगत पूर्णमल, पिंगला-भरथरी, अमर सिंह राठौर, जानी चोर, राजा सुल्तान निहालदे, बाबा भीमराव अम्बेडकर आदि उनके लोकप्रिय एवं प्रभावी सांग थे। उन्होंने अपने कुशल सांग मंचन से भारत वर्ष के सभी हिन्दी राज्यों में अपने प्रदेश का नाम रोशन किया। मास्टर नेकीराम को भारत वर्ष के समस्त राज्यों में स्थापित भारतीय सैनिक छावनियों में भी विशेष उत्सवों के अवसर पर सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतू सांग कला के मंचन के लिए आमंत्रित किया जाता था। उन्होंने अपनी एक रचना में कहा है कि
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|रचनाकार=मास्टर नेकीराम
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<poem>
बाबुल गैल्या देख्या काबुल, लाहौर-रांची मुल्तान गया,
कई बार करे सांग फौज म्हं, नेफा-नेपाल भूटान गया,
पूर्व-पश्चिम उत्तर-दक्षिण, लगभग सारा हिन्दुस्तान गया,
नेकीराम सतगुरू कृपा से, दुनिया म्हं गुणगान हुया ।।
</poem>
एक कवि के रूप में भी मास्टर नेकीराम ने अपना कलम तोड़ अन्दाज दिखाया। इन्होंने अपनी रचनाओं में तत्कालीन समस्याओं का सहज रूप से निरूपण, समाज को खण्डित करने वाली कुरीतियों का खण्डन, नैतिक मूल्यों में आई गिरावट, आर्थिक विषमता,रिश्वतखोरी, शिक्षा, तीज त्योहारों, रीति-रिवाजों व सामाजिक मूल्यों का उल्लेख करते हुए समाज में जागरूकता लाने का सफल प्रयास किया। इनकी रचनाओं का प्रंशनीय पहलू यह है कि इन्होंने अपनी सांग रचनाओं में कभी श्लीलता की सीमा नहीं लांघी। इन्होंने अपनी रचनाओं में मातृशक्ति को भी सदैव सम्मान दिया। इनकी एक रचना की पंक्तिया है कि
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मास्टर नेकीराम |अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatHaryanaviRachna}}<poem>बेल -बधेवा अगत निशानी , खोटी बीर बताते क्यों?उल्टी बुद्धि मति गुद्दी ने बेपीर नै, बे-पीर बताते क्यों?सुन्दर स्वच्छ पदार्थ कर दिए बेतासीर , बे-तासीर बताते क्यों?चार आश्रम कायम कर दिए , दोष शरीर बताते क्यों?हो पूरी पक्की पंसेरी ला , पांसग घाट करै सै।सै,प्रोपगण्डा नेकीराम सब झूठी डाट करै सै।सै।।</poem>
इतना ही नहीं मास्टर नेकीराम अपनी रचनाओं में हरियाणवी लोक संस्कृति के प्रति अगाध आस्था व राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना का परिचय देना भी नहीं भूले। जब भारत का पाकिस्तान व चीन के साथ हुए युद्धों के दौरान मास्टर नेकीराम ने अनेक देशभक्ति की रचनाएं रची और उनकी प्रस्तुति दी।
युद्ध के दिनों में जहां भी मास्टर नेकीराम के सांगों का आयोजन होता वे अपने सांग से पहले भारतीय सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतू इस रागनी को जरूर गाते थे। इसकी कुछ पंक्तियां इस प्र्रकार है:-
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मास्टर नेकीराम |अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatHaryanaviRachna}}<poem>छुट्टी बाकी चिठ्ठी आग्यी , एक जवान की।की,माता बोल्यी जा बेटा , जय हो बलवान की।। झटपट तैयारी करले बेटा , देर लगाइए मतना,सीना खोलकै लडि़ए , गोल़ी पीठ पै खाइए मतना,जा उल्टा भाग मौर्चे पै , मेरा दूध लजाइए मतना,बाप की तरियां लडि़ए बेटा , लोग हंसाइए मतना,सबनै एक दिन मरना , परवा कौन्या जान की।की,माता बोल्यी जा बेटा जय हो बलवान की।।</poem>
वहीं मास्टर नेकीराम भारत रत्न बाबा भीमराव अम्बेडकर के नारे शिक्षित बनो को साकार करते हुए अपने सांगों के माध्यम से आजीवन शिक्षा की अलख जगाते रहे। उन्होंने अपने सांग सेठ ताराचन्द की एक रागनी में कहा भी है कि:-
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मास्टर नेकीराम |अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatHaryanaviRachna}}<poem>लिखे पढ़े बिना कदर नहीं सै , पढऩे की तैयारी करले।कोई अनपढ़ बेटा रहज्या किसे का तडफ़-2 कै मरले।।उन मात-पिता कै पाप चढै़ जिसनै ना सन्तान पढाईकरले,सारी दुनिया तान्ने मारै जिन्दगी भर मिलै बुराई,मरती बरिया गती मिलै ना बस रहज्या लोग हंसाई,कह नेकीराम तू गुरू पीर तै सीख लिए कविताई,पढ़ लिखकै विद्वान बणज्या भवसागर तै तरले।
कोई अनपढ़ बेटा रहज्या किसे का तडफ़-2 कै मरले।।
 
उन मात-पिता कै पाप चढै़, जिसनै ना सन्तान पढाई,
सारी दुनिया तान्ने मारै, जिन्दगी भर मिलै बुराई,
मरती बरिया गती मिलै ना, बस रहज्या लोग हंसाई,
कहै नेकीराम तू गुरू पीर तै, सीख लिए कविताई,
पढ़ लिखकै विद्वान बणज्या, भवसागर तै तरले,
</poem>
प्रसिद्ध विद्वान श्री रत्न कुमार सांभरिया व डॉ. शिवताज सिंह के अनुसार मास्टर नेकीराम ने अपनी सांग रचनाओं में ठेठ आंचलिक शब्दों का प्रयोग किया है। इनमें अहीरवाटी व जाटोती दोनों बोलियों का पुट है। छन्द व अलंकार की दृष्टि से भी येे रचनाएं बेहतरीन है और इनमें गजब का काव्यानुशासन है। इन रचनाओं में मुहावरों का बहुत ही सुन्दर प्रयोग हुआ है।
मास्टर नेकीराम की सांग मण्डली में उनके सभी शिष्य व कलाकार गायन-वादन व अभिनय कला में सिद्धहस्त थे। इनमें रेवाड़ी के गांव भाड़ावास के नेतराम,खरखड़ी के हुक्म सिंह,बधराना के धर्मबीर, झज्जर बेरी के मातादीन,सोनीपत के रामसिंह,अलवर स्थित बढ़ली की ढ़ाणी के अमर सिंह,बादली के प्रकाश, दिल्ली के देशराज, अलवर के गांव जसाई के हरिसिंह, महेन्द्रगढ़ के गांव खेड़ी तलवाणा के मोहन व सरफू जैसे कुशल नृतक, जैतड़ावास के हरदयाल, बिहारीलाल, खम्बूराम,श्योलाल, दिल्ली के धनीराम,सहारणवास के जग्गन, झज्जर के गांव साल्हावास के बनवारी, धर्मपाल, नफेसिंह, डूम्मा के चन्दगी राम, महेन्द्रगढ़ के कांटीखेड़ी के बाबूलाल, रेवाड़ी के रामेश्वर, रामसिंह जैसे प्रतिभा सम्पन्न साजिन्दे, भाटोठा की ढाणी के हरफनमौला हास्य कलाकार हीरालाल , बड़ा सरजीत (खरकड़ी), छोटा सरजीत (खरकड़ी), श्री बनवारी, भगवाना आदि के नाम प्रमुख है। हीरालाल व प्रकाश तो इनकी सांग मण्डली में ऐसे थे जैसे शरीर में सांस।
मास्टर नेकीराम एक अच्छे सांग सम्राट व कवि ही नहीं अपितु एक उदारचेता, दानी, परदुखकातर व लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण सच्चे निष्पक्ष समाज सेवी थे। उन्होंने अपने सांगों के माध्यम से अनेक मन्दिर, कुआ, बावड़ी, धर्मशाला, गौशाला, स्कूल,तालाब आदि के निर्माण सहित अनेक जनहित कार्य करवाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने सांगों द्वारा गरीब कन्यायों के विवाह व अनेक बेसहारा लोगों की मदद करके एक मानवता की मिशाल कायम की। अपना सारा जीवन दबंग अस्मिता के साथ व्यतीत करने वाले मास्टर नेकीराम ने 60 वर्षों तक लगातार सांग मंचन करने का रिकार्ड अपने नाम करने के उपरान्त अपनी वृद्धावस्था के कारण सांग मण्डली की बागडोर अपने पुत्र मास्टर राजेन्द्र सिंह को सौंप दी। 10 जून 1996 को मास्टर नेकीराम को मास्टर नेकीराम का देहान्त हो गया।
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